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________________ 69. 14. 3] महाकइ पुष्कर्यंत विश्यउ महापुराण रेहति बे वि बलएव हरि णं गंगाजउणा जलपवह णं पुण्ण मणोरह सजणहं अवरोप्पर शिक्ष णिम्मच्छ राहं सहसाई बिहि मणिद्देसियई ' पण रहचावई तूं गतणु पुरबाहिर उववणसंठिय - अवलोइवि रामहु सरपसरु करि आउ जं लक्खणु धरइ 13 णं तुहिणगिरिजणिसिहरि' । णं लच्छिहि की लारमणवह" । णं वम्मवियारण दुज्जणहं । तेरहबारह सवच्छ राहूं । परमाउसु जइवर भासियई । ते सत्य सुगंति गुणति धणु । विद्धतहु जयउक्कंठिहु | मउ चेय मुयंति ण बइरि सह । तहु परपहरणु जिण संचरइ । घत्ता – कंपइ महि-संचारें, ससरसरा सणहत्थर्ह ॥ संकइ जमु" जमदूर को गउ तसइ समत्थहूं ||13|| 14 रिसहाहिव संताणाइयहं संखापरिवज्जिय पुरिस गय अण्ण' कहिं जीवयकहइ सिरिभरहसयररायाइयहं । अहमद वि जहि कालेण मय । लइ अत्थमिय पत्थियस हुइ । 23 5 10 (13) वे दोनों बलभद्र और नारायण इस प्रकार शोभित होते थे मानो हिमगिरि और नीलगिरि पर्वत हों, मानो गंगा और जमुना के जल प्रवाह हों, मानो लक्ष्मी की क्रीड़ा करने के पथ हों, मानो सज्जनों के पुण्य मनोरथ हों, मानो दुर्जनों के मर्म का भेदन करने वाले हों। एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या भाव से रहित जब तेरह वर्ष बीत गये तो सहसा उन्हें परम आयु वाले मुनिवरों के द्वारा कहे गये उपदेश दिये गये । पन्द्रह धनुष प्रमाण ऊँचे शरीर वाले वे दोनों शास्त्र सुनते हैं । और धनुष पर डोरी चढ़ाते हैं। नगर के बाहर उपवन में स्थित, विध्वंस करते हुए जय के लिए उत्साहित राम के तीरों के प्रसार को देखकर शत्रु अपनी मद चेतना छोड़ देता है, वह तीर नहीं छोड़ता । जब लक्ष्मण अपने हाथ में हथियार लेता है तो दुश्मन का हथियार काम नहीं करता । धत्ता - तीर-धनुष हाथ में लेकर जब वे चलते हैं तो धरती काँप जाती है । यम शंका करने लगता है । और यमदूत भी । समर्थ लोगों से कौन त्रस्त नहीं होता ! I (14) विश्वनाथ की कुल परम्परावाले श्री भरत और सगर के गोत्र वाले राजाओं में से जहाँ असंख्य लोग चले गये, (औरों की तो क्या ) अहेमेन्द्र जहाँ काल के द्वारा मारा जाता है वहाँ दूसरों के जीवन कथा से क्या ? राज्यसभा के अस्त होने पर हरिषेण के स्वर्ग जाने पर हजारों (13) 1. AP हिगिरिद गीलसिरि। 2. A जलपवाह: P "जलविहु । 3. A रमणगह; P 'रवणवहु । 4. A निद्देसियउ । 5. A भासियउ । 6. A जम (14) 1 A अण्ण वि कहि: P अहि किं । 2. A अ अत्थमिए P लद अत्यमिए ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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