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महान्पुष्कयंत विषय महापुराण
घत्ता - अं अणिमाइगुणेहिं बहु विद्वेण णिउत्तरं ॥ तं दिविदीहरु कालु बिहिं मि दिब्बु सुहुं भुत्तउं || 101
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इह भरवरिसि कासीविसइ । जहि सालिधण्णछेत्त तरई । जहि सालिहियाई व अक्खरई । गोहणई चरंतई पह जि पड़ । दीति हरियतणपुट्ठाई । दवखारसु पिज्जइ मुहरसिउ । फणिवेल्लित्तपत्तलि थियजं । देसियढक्करिजंपणरवहि । अणभरिय हि वाणारसिपुरिहि । णिवसइ णिउ जियरिज थिरु सवसु । णउ दोसायरु जायज ॥ जो इक्खाउहि वंसि णरवइरूढिइ' आयउ ।। 11
सरवरमरालच विखयभिसइ जहिं सालिरमणकीलाहरई जहि सालिकमलखणई सरई सिसुहसपंयइ मयरंदरइ रोमंत संतुट्ठाई उच्छुरसु जंतणालीहसिउ ओ सीयलु दहिल्लियउं
जहि जिम्मइ पहिययणहिं पर्वाहि ओहामिय अलयाउरिसिरिहि तर्हि दसरहु दसदिसिणिहियजसु
घत्ता - - कुवलय बंधु वि पाहु
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धत्ता - जो अणिमा गुणों के द्वारा अनेक प्रकार के वैभव से युक्त है, स्वर्ग में ऐसे लम्बे समय तक उन दोनों ने दिव्य सुख का भोग किया ।
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इस भारतवर्ष में काशी नाम का देश है, जो सरोवर के हंसों के द्वारा आस्वादित कमलनियों से युक्त है । जहाँ स्त्रियों और पुरुषों के रमण करने के लिए क्रीड़ा घर हैं । जहाँ शालि धान्य के तरह-तरह के खेत हैं। जहाँ भ्रमरों से युक्त कमलों से सरोवर आच्छादित हैं। जो लिखे हुए अक्षरों के समान हैं। हँसों के छोटे-छोटे बच्चों के पैर जहाँ पराग में सने हुए हैं। जहाँ पग-पग पर गोधन चर रहे हैं। और जो संतुष्ट होकर जुगाली करते हुए हरे घास से पुष्ट शरीर वाले दिखाई देते हैं । जहाँ यंत्रनलियों से गिरा हुआ गन्ने का रस तथा मुँह को मीठा लगने वाला द्राक्षारस पिया जाता है। दही से मिला हुआ ठंडा भात नागबेली के पत्तों की पत्तल पर रखा हुआ है । जो देशी ढक्का और जंपाण वायों के शब्दों के साथ प्याऊ पर पथिकजनों के द्वारा खाया जाता है। जिसने अलका नगरी की शोभा को पराजित कर दिया है। जो जनों से व्याकुल है। ऐसी वाराणसी नगरी में दशों दिशाओं में अपने यश का विस्तार करने वाला शत्रुओं का विजेता स्वाधीन, स्थिर राजा दशरथ निवास करता है ।
छत्ता- वह राजा कुबलय बन्धु यानी चन्द्रमा था। और (दूसरे पक्ष में) धरती मंडल का स्वामी अर्थात् चन्द्रमा पर वह दोषाकार नहीं था और जो नरवरों से प्रसिद्ध इक्ष्वाकुकुल में उत्पन्न हुआ था।
5. A बहुवितवेण ।
(11) 1 A चालियभिसए। 2. P रोमंत पसुसंतुट्टाई 3. AP वाराणति । 4. A रूढि आयउ ।