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________________ 20] 10 महाकवि पुष्पवरत विरचित महापुराण [69.9.11 जिह दोहिं मिलइयउं तवचरणु ता जायउं तायहु सिसुकरुणु । कोमलतणु णीसारिवि घरहु पंदण पट्ठविवि वणंतरहु। घत्ता---डह बुणिदिरु रज्जु रज्जु जि पाउ णिरुत्तउं ।। रज्जमएण पमत्त ण सुणइ" जुत्ताजुत्तउं ॥७।। 10 णियगोत्तिउ' णियकुलि संणिहिउ वणु जाइवि राएं तबु गहिउ । भरहेण व अहिषविधि रिस प हलु मुणिवसहु । गज मोक्खहु अक्खयसोक्खमइ थिउ णाणदेहु णिग्वाणपइ। खग्गउरहु बहि कयधम्मकिसि आयाबणजोए बालरिसि। थिय जइयतुं तइयतुं महि जिणिवि महसूयणु समरंगणि हणिवि। सुप्पह पुरिसोत्तम दिट्ठ पहि ससिचूलें चितिउं हिययरहि । दौसइ गरणाहहु जेरिसडे महु होउ पहुत्तणु तेरिसडं। मुड' सणकुमारु हुउ रिसि विजउ सुरु णामु सुवण्णचूलु सदउ । कमलप्पाहि विमलविमाणवरि णिवतणउ मणिप्पहि अमरघरि । मणिचूलु देउ जायउ पवरि कलहंसु व विलसइ कमलसरि । मंत्री ने उसे यह बताया कि किस प्रकार उसने मुनि के पास बालकों को रख दिया है और किस प्रकार दोनों ने सप आचरण स्वीकार कर लिया है। यह सुनकर पिता को बालकों के प्रतिकरुणा उत्पन्न हो गई। वह कहता है कि कोमल शरीर वाले पुत्रों को घर से निकालकर वन के भीतर मैंने भेजा दिया ! घत्ता--पंडितों की निन्दा करनेवाले राज्य का नाश हो । निश्चय ही राज्य एक पाप है। राजमद में पागल होकर व्यक्ति अच्छे-बुरे का विचार नहीं करता। (10) अपने गोत्र के व्यक्ति को कुल परम्परा में स्थापित कर राजा ने वन में जाकर तप ग्रहण कर लिया और जिस प्रकार भरत ने ऋषभ तीर्थंकर की अभिवंदना कर दीक्षा ग्रहण की थी उसी प्रकार मुनिश्रेष्ठ महाबल को प्रणाम कर उसने भी दीक्षा ग्रहण की। अक्षय सुमति वाला वह मोक्ष चला गया तथा ज्ञानशरीर वह निर्वाण पद पर स्थित हो गया। खड्गपुर के बाहर धर्म की खेती करनेवाले बाल-ऋषि आतापन योगसे जब स्थित थे तब उन्होंने धरती जीतकर तथा युद्ध के प्रांगण में मधसदन को मारकर जानेवाले सुप्रभ और परुषोतम को रास्ते में देखा तो चन्द्रचल अपने मन में सोचने लगा, जिस प्रकार को प्रभुता इस नरनाथ को दिखाई देती है मेरी भी वैसी प्रभुता हो। विजय मुनि मरकर सनत् कुमार स्वर्ग में स्वर्णचूल नाम का दयालु देव हुआ। कमलप्रभ नाम के बिमल श्रेष्ठ विमान में तथा राजपुत्र (चन्द्रचूल) मणिप्रभ देव विमान में मणिचूल नाम का देव हुआ। वह ऐसे मालूम होता था जैसे कमल सरोवर में कलहंस घोभित हो रहा हो । 9.A पटुविय । 10. AP पमत्तु। 11. AP मुणइ। (10) I. AP णियणत्तिज। 2. A दिदि । 3. A मुए । 5. AP सणकुमारे।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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