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________________ [19 69.9.10] महाकइ-पुप्फयंत विरयइयड महापुराणु गणणाहहु यवम्महबलहु दीवय णवंत महाबलहु । रायागमणायवियाणएण कुच्छियमइ धाडिय राणएण। परमेसर ए णर भय्व जइ वर एवहिं तुहं उद्धरहि तइ । घत्ता-दुम्मइमलमइलेहि कुंअरिहि कहि जाएवउं॥ अनि अलिप करत एहि काई पावेव ॥४॥ मणि भणइएत्थु दिहि'करिवि तवे होहिति सीरि हरि तइयभवे । णामेण रामलक्षण विजई तं णिसुणिवि जाया तरुण जई । गउ मंति णिहेलणु पय णवइ णरणाहहु वइयरु विण्णवइ । वसुहाहिव तणुरुह गिरिविवरि आरण्णि णिहिय वणवासिंघरि । कासु वि सकम्मउग्गुग्गमहो' तणुदुक्खलक्खबिहिसंगमहो'। विसहावियदंडण मुंडणई" पंचिदियदप्पविहंडणई। णिवणयणई मुक्कसुयजलई ओसासित्ताई व सयदलई । हा हा मई रूसिवि किं कियउं कि बालजुयलु दुक्खें यउं। अइरहसे किज्जइ कज्जरइ जा सा णिद्दहइण कासु मइ। मणु मंतें परियाणिवि पइहि अक्खिउ जिह पासि णिहिय जइहि। 10 मुनिनाथ महाबल को नमस्कार करते हुए उसने उन्हें दिखाया और कहा कि हे परमेश्वर, राजनीति-शास्त्र के न्याय को जानने वाले राजा ने दुष्ट बुद्धि वाले इन दोनों कुमारों को निकाल दिया है । यदि ये दोनों भव्य जीव हों तो इस समय आप इनका उद्धार करें। पत्ता-दुर्मति के मल से मैले ये कुमार कहाँ जायेंगे ? हे भगवन्, आप बताइये कि ये किस भव्यता को प्राप्त होंगे (इनका भविष्य क्या होगा? मुनि कहते हैं कि ये यहाँ दीर्घ तप करके तीसरे भव में बलभद्र और नारायण होंगे। राम और लक्ष्मण के नाम से विजेता। यह सुनकर, वे दोनों युवा मुनि हो गए, मंत्री घर गया। वह राजा के चरणों में प्रणाम कर वृत्तान्त बताता है कि हे राजन्, दोनों कुमारों को पहाड़ के विवर में एक जंगल में वनवासी के घर छोड़ दिया गया है। शरीर के लाखों दुःखों और भाग्य के संगम से अपने कर्मों के उग्र उदय के कारण कोई भी व्यक्ति जिसमें दंड और मुंडन सहा गया है, ऐसे पाँचों इन्द्रियों के दर्प के विखंडनों को भोगता है। राजा की आँखें अश्रू धारा छोड़ती हुईं ओस से भीगे हुए कमल दल के समान मालूम होती थीं (वह विलाप करने लगा) कि मैंने क्रुद्ध होकर यह क्या किया! क्यों मैंने अपने दोनों बच्चों को दुःख से मार डाला ! जो कार्य में अत्यंत जल्दबाजी करती है, ऐसी वह बुद्धि किसे नहीं जलाती ! राजा के मन को जानकर 4. APणमंत । 5. AP कुमरहिं । 6. P भयवंतहिं। (9) 1. Pबिहि12. Aणिहेलणि पद। 3.A उमरगमहो। 4.A 'दिहि"। 5.AP इंडण । 6. P मुंडणहो। 8. AP णिहछ ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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