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________________ [69. 7.3 महाकषि पुष्पदन्त विरचित महापुराण गडदूसणु णीरसपेक्खणउं' कइदूसणु कच्छ अलक्खणउं । धणदूसणु सहखलयणभरणु' बयदूसणु असमंजसमरणु' । रइसणु खरभासिणि जुवइ सुहिदूसणु पिसुणु विभिण्णमइ । सिरिसणु जडु सालसु णिवइ जणदूसणु पाउ पत्तकुगइ। गुरुदूसणु णिवकारणहसणु' मुणिमणु कुसुइससमब्भसणु । ससिदूसणु भिगमलु मसिकसणु कुलदूसणु गंदणु दुव्वसणु । पत्ता-लइ जं तुम्हहं इठ्ठ मई वितं जि पडिवण्णउं ।। जाइवि कुलवुड्ढेहिं बालहं उत्तर दिण्णउं ।।7।। 10 कि परकलत्त उदालियउं उज्जल अप्पाणउँ मइलियां। कि बप्प सुदप्प कुसंगु किउ' परयारचोरकीलाइ थिउ । कुद्ध पिउ एवहिं को धरई तुम्हार जीविउ अवहरइ। तं णिसुणिवि सिसु चवंति गहिरु अत्यंतु णिवारइ को मिहिरु । को रक्खइ आवंतउं मरण जगि कासु ण ढक्कइ जमकरण । कु वि अग्गइ कुवि पच्छइ मरइ चश्वसदततरि पइसरह। मंतीसे करपल्लवधरिया सुय बेपिण वि किंकरपरियरिया। सारबिलगम दाहणि पइसारित रिण वि गिरिगहणि । नट का दूषण है। व्याकरण से शून्य काव्य कवि का दूषण है। कुटिल और दुष्ट लोगों का पालन करना धन का दूषण है। संदेह (शल्य) के साथ मरना प्रत का दूषण है। दुष्ट बोलना नबयुवती की रति (प्रेम) का दूषण है। कुगति को प्राप्त करने वाला पाप लोगों का दूषण है। अकारण हैसना गुरु का दूषण है । खोटे शास्त्रों का अभ्यास करना मुनि का दूषण है। और काला मृग-चिल्ल चन्द्रमा का दूषण है, और दुर्व्यसनी पुत्र कुल का दूषण है। पत्ता-तो जो तुम लोगों को अच्छा लगे वही मैंने स्वीकार किया। तब कुलवृद्धों ने जाकर बालकों को उत्तर दिया। तुमने दूसरे की स्त्री का अपहरण क्यों किया? तुमने उज्ज्वल अपने को कलंकित किया है। घमंडी, तुमने खोटी संगति क्यों की ? दूसरों की स्त्रियों के दिलों को चुराने की क्रीड़ा में तुम क्यों लगे ? तुम्हारे पिता इस समय क्रुद्ध हैं, उन्हें कौन रोक सकता है, वह तुम्हारे जीवन का अपहरण करेंगे? यह सुनकर कुमार गंभीर स्वर में कहता है कि डूबते हुए सूर्य को कौन बचा सकता है ? आती हुई मौत से कौन बच सकता है ? संसार में रोग किसके पास नहीं पहुँचता? कोई आगे और कोई पीछे मरता है। इस प्रकार यम की डान के नीचे प्रवेश करता है। मंत्री अनुचरों से घिरे हुए दोनों पुत्रों का हाथ पकड़कर उन्हें बड़े-बड़े वृक्षों में लगी हुई चंचल दावाग्नि से जलते हए गहन घन में ले गया । गणनाथ के मुखिया कामदेव का बल नष्ट करने वाले गणनाथ (7) 1. AP पीरसु । 2, A सह खलयर। 3. AP असमंजसु । 4. A भसणु । 5. Aजि । (8) I. A सदप्यु। 2. A उदयंतु। 3. AF 'पल्लवि धरिया ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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