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________________ 69. 2.9] [13 महाका-पुष्फत-बिरामज महापुराणु बहहियवइ जइ वि ण पइसरमि घिद्वत्ते तइ वि कव्व् करमि | मह खमउ भडारी विउससह आयण्णहु रहुवइरायकह । छत्ता-सुकइपयासियमगि मणि दहमुह वि चमक्कइ ।। रामधम्मगुणसद्दि अमुहु पिसुणु कहिं बुक्कइ ।।1।। जिणचरणकमलभसले झुणिउं मई एउ*णिरत्थु वि रुणुरुणिउं। सुइपेसलु कण्णविइण्णसुहु वियसावियमाणिणिभिमुहु। साइ लग्गइ चित्ति वियक्खणहु जसु रामहु पोरिसु लक्षणहु । वहदेहिसइत्तण भसियउं जलबिद व पोमपस्ति' थिय । मुत्ताहलवण्णु समुबहइ आसयगुणेण कषु वि सहइ । जंविरइ मंदमंदमईहिं अम्हारिसेहिं जगि जडकईहिं। जं जगि पसिद्ध सीयाहरणु जं अंजणेयगुणबित्थरणु । जं विडसुग्गीवरायमरणु जं तारावइअब्भुद्धरणु । जं लवणसमुद्दसमुत्तरणु जणिसियरवंसह खयकरणु । धृष्टता से काव्य की रचना करता हूँ। आदरणीय विद्वत्-सभा मुझे क्षमा करे। अब रघुपतिराज की कथा सुनिए। पत्ता-सुकवियों के द्वारा प्रकाशित (सुकइ-सुकपि, सुकवि ) मार्ग में रावण भी मन में डरता है, तथा राम के धनुष की डोर के शब्द वाले उस मार्ग में, खरदूषण आदि दुष्ट कैसे आ सकते हैं ? (कवि का अभिप्राय यह है कि रामायण काव्य लेखन का मार्ग बड़े-बड़े कवियों द्वारा प्रकाशित है । उसमें राम के धर्म और धनुष का वर्णन है, अत: उसमें दुष्टों की पहुँच का प्रश्न नहीं उठता)। जिन भगवान् के चरणकमलों के भ्रमर द्वारा कहा गया यह (काव्य) मैंने व्यर्थ गुनगुनाया। राम का यश और लक्ष्मण का पौरुष सुनने में मधुर कानों को सुख देने वाला तथा मानिनी स्त्रियों के शिशु मुख को विकसित करने वाला स्वयं विद्वानों के चित्त को खींच लेता है। इसमें सीता देवी का भूषित सतीत्व है। जिस प्रकार कमल (पद्यपत्र) पर स्थित पानी की बूंद मोती के सौंदर्य को धारण करती है, उसी प्रकार, पद्य पत्र (राम रूपी पात्र) पर अवलंबित मेरा काव्य, अक्षय गुण से शोभित होता है, हम जैसे अत्यन्त मन्द बुद्धिवाले जड़ कवियों ने जो राम काव्य की रचना की है, जग में जो सीता का हरण प्रसिद्ध है, जो हनुमान के गुणों का विस्तार है, जो कपटी सुग्रीय का मरण है, और जो सुग्रीव (तारापति) का उद्धार है, जो लवण-समुद्र का संतरण है, और जो निशाचर वंश का क्षय करने वाला है 7. P चक्कवह। 8. A समुह । (2) 1. AP 'भमरें। 2. AP एत्थु । 3. A लइ । 4. P पोमवत्ति। 5. A समुदहं उत्तरणु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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