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________________ माकषि पुष्पदन्त विरबित महापुराण [68.8.6 णियणयविद्ध सियपरमयाहं वाइहिं बारहसय संजयाहं । पणदहसय पुणु मणपज्जयाहं णासियसुप्पयरिउसंपयाह। पण्णाससहासई संजईहि सावयह लक्खु यदुम्मईहि.। मंदिरवयणारिहि तिण्णि लक्ख सुर तिरिय असंख णिरुद्धसंख। 10 हिंडेप्पिणुः एव महीयलंति मासाउसेसि थिइ जीवियंति । फग्गुणतमदसमिहि सवणजोइ णिसि पच्छिमसंझहि मुक्ककाइ। रिसिसहसे सहुं संमेयकुहरि सिद्धउ थिउ जाइवि तिजगसिहरि' । पत्ता-अरसु अगंधु अवण्णमा फाससद्दवाज्जिउ गयरूबउ ।। मुणिसुव्यउ महुं दय करउ सुद्ध सिद्ध हुउ गाणसहावउ ॥ 8 ॥ णिब्द सुब्बइ जो णिज्जियारि इह जायउ महिवइ चक्कधारि। हरिसेणु णाम तहु तणउं चरिउ .णिसुणह पवित्त परिहरिवि दुरिउं। वरभारहवरिसि अणंततिरिथ गंथियकुगंथबंधणबहित्यि'। गरपुरवरि णाहुणराहिरामु तउ करिवि हरिवि कलि कोहु कामु। सुविसालविमाणि विमाणसारि संभूयउ अमरु सणकुमारि । इह खेत्ति भोयपुरि दोहबाहु इक्खाउसि पिउ पउमणाहु । तह देबि किसोयरि सुद्धसील अइरा एरावयगमणलील। करने वाले मनःपर्ययज्ञानी पन्द्रह सौ थे। आयिकाएँ पचास हजार थीं। श्रावक एक लाख थे। अपनी दुर्मति का नाश करनेवाली तथा मन्दिर का व्रत ग्रहण करनेवाली श्राविकाएँ तीन लाख थीं । देव असंख्यात और तियंत्र संख्यात । इस प्रकार धरतीतल पर विहार कर, जब उनके जीवन की आयु एक माह बाकी रह गई, तो फागुन कृष्णा दसवीं के दिन श्रवण योग में रात्रि की पश्चिम संध्या में सम्मेद शिखर पर, मुक्तकाय वह एक हजार मुनियों के साथ, सिद्ध हो गए और त्रिजग के शिखर पर स्थित हो गए। घत्ता अरस, अगंध, अवर्ण, स्पर्श और शब्द से रहित और रूपरहित, मुनिसुक्त तीर्थंकर; मुझ पर दया करें कि जो शुद्ध सिद्धि और ज्ञानस्वभाव हो गए हैं ! ॥४॥ (9) मुनिसुव्रत भगवान के निर्वाण प्राप्त कर लेने पर, शत्रुओं को जीतनेवाला जो चक्रवर्ती राजा हुआ था उसका नाम हरिषेण था। अपने दुरित का नाश करने के लिए, तुम उसका पवित्र चरित्र सुनो । अनन्तनाथ के तीर्थकाल में उत्तम भारतवर्ष में, जो कुत्सित ग्रन्थों की रचना से मुक्त है, ऐसे नरपुरबर में मनुष्यों के लिए सुन्दर राजा तप कर तथा पाप, क्रोध और काम को दूर कर, विमानों में श्रेण्ड विणाल नामक विमान में सनत्कुमार देव उत्पन्न हुआ। यहाँ भरतक्षेत्र में भोगपुर में दीर्घबाहु, इक्ष्वाकुवंशीय राजा पद्मनाभ था । उसको, शुद्धचरित्र ऐरावत के समान 2.A महि डिडेपिणु इम महिगलति । 3. A सिसिहरि । (9) 1. A कुगंथिबंधण । 2. AP विवाणि विवाण' ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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