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________________ 10 68. 10.8] महाकइ-पुस्फयंत-विरायड महापुराण एयहं सो सुरु अंगरुह जाउ हेमाहु समाजुयपरिमियाउ। हलक्खणु वीसधणुप्पमाणु कतीइ चंदुतेएण भाणु । गउ तेण समउं पिउ पुहइवीरु मणहरवणि णविधि अणंतवीरु। रिसि हूयउ पहु पंकरुणाहु पुत्त आयण्णिवि धम्म साह । घत्ता–लइयई पंचाणुव्बयइं पंच वि इंदियाई णियमंतें।। आवेप्पिणु पुरु' रज्जि थिउ पुण्णपहावें काले जंतें ।। १ ।। 10 उप्पण्णउं पहरणु परि रहंगु पविदंडु चंडु रिउदिपणभंगु । णित्तिसु तहि जि धवलायवत्त सिरिहरि कागणि मणि चम्मजुत्त । जणणहु केवलसिरि देहु' पत्त एक्कहिं खणि तणएं णिसुय बत्त । जाइवि जिणु वंदिवि रसियवज्ज घरु आविवि विरइय चक्कपुज्ज । मंदिरवइ थवइ पुरोहु अवरं सेणावइ णिज्जियवीरसमरु । करितुरयणारिरयणाई जाई विज्जाहरेहिं दिग्णाई ताई। उल्लंघियाइं सायरजलाई संसाहियाइं धरणीयलाई। काराविय किणरखयरसेव दसिकय अणेय गणबद्धदेव। गमनलीला वाली अइर नाम की देवी थी। वह देव इन दोनों का पुत्र उत्पन्न हुआ। हेमाभ दस हजार वर्ष की आयु वाला। शुभ लक्षण उसका शरीर बीस धनुषप्रमाण था । वह कान्ति में चन्द्रमा और तेज में सूर्य था । पृथ्वीवीर पिता उसके साथ मनहर उद्यान में गया और अनन्तवीर को प्रणाम कर पद्मनाभ मुनि हो गया । पुत्र ने भी साघु धर्म सुनकर; घत्ता–पाँच अणुव्रत ग्रहण कर लिये । तथा पाँचों इन्द्रियों का नियमन करते हुए, नगर में आकर राज्य में स्थित हो गया। पुण्य के प्रभाव से समय बीतने पर ।।।। (10) उसे घर में प्रहरण चक्र उत्पन्न हुआ। शत्रुओं को घात देने वाला प्रचण्ड वनदण्ड, तलवार, वहीं पर धवल आतपत्र, भण्डार घर में कागणि चर्म युक्त मणि, पिता के शरीर को केवलश्री प्राप्त हुई । एक ही क्षण में पुत्र ने यह बात सुनी 1 जाकर जिन की वन्दना कर, तथा घर आकर जिसमें बाय बज रहे हैं, इस प्रकार चक्र की पूजा की । गृहपति, स्थपति, पुरोहित और जिसने वीर युद्ध जीता है ऐसा सेनापति, तथा जितने गज, तुरंग और नारीरत्न हो गए जो विद्याघरों ने दिये। उसने सागर जलों को पार किया और धरणीतलों को साध लिया। किन्नरों और विद्याधरों से 3. AP पुहाधीस। 4. AP जायउ। 5. A घम्मलाहु । 6. P पंचेंदियाई । 7. P omits पुरु | 8. A जतें कालें। (10) 1. A देहि । 2. A 'धीरसमस ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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