SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 240] 10 महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराग [80. 15.9 पहयतूररवपूरिख पहयलु मेवोत्तमुपास कलमलु। उम्भिय धय रयण विच्छिण्णई दीणाणाहहं दाणइंदिण्णई। धरिय चारुचंदोवय चामर णच्चिय धरणिरंगि विविहामर। दरिसंतेहि तेहिं तहि णवरस णवचालीसभावपसरियजस । छत्तीस वि दिठ्ठि पयांतहिं कर चउसट्ठि तेत्यु परिसंतहिं । णच्चिवि विविहणटुरूवें वर सिद्धबेत्तु पणवेप्पिणु सुरवर । समउ सुराहिवेण गय णहयलि अरुण वरुण वइसवण सुणिम्मलि। 15 घत्ता-हरि सुरई समासइ जंतु णहि णियचरिएं मुणियच्छलिण॥ उज्जोइउ भरहु जि णमिजिणिण पुष्फयंतकिरणुज्जलिण ।।15।। 16 दुबई हुइ' णिव्वाणगमणि णमिणाहहु सासयसिवणिवासहो ।। ___अक्खमि चरिउ चक्किजयसेणहु सयलजणाहिरामहो ॥छ।। जंबूदीवि एत्यु सुमहतई मेरुहु उत्तरेण गुणवतई। ने देवाधिदेव की पूजा की। आहत तूर्यों के शब्दों से आकाश आपूरित हो गया। गाये गये स्तोत्रों की ध्वनि का कल-कल शब्द होने लगा। ध्वज उड़ने लगे। रत्न बिखेर दिए गए। दीन अनाथों को दान दिया गया । सुन्दर चन्द्रमा के समान चामर धारण कर लिए गए। धरती के रंगमंच पर विविध देवों ने नत्य किया। जिनका यश उनचास भावों तक प्रसरित है ऐसे नव रसों का प्रदर्शन करते हुए, छत्तीस दृष्टियों को प्रगट करते हुए, चौसठ हाथों का प्रदर्शन करते हुए, विविध नृत्य रूप से नृत्य कर सुरवर सिद्ध क्षेत्र को प्रणाम कर देववर देवेन्द्र के साथ आकाश मार्ग से चल दिए। धत्ता-आकाश में जाते हुए हरि देवों से संक्षेप में कहता है कि मुनियों के लिए वत्सल भाव रखने वाले, अपने चरित से सूर्य और चन्द्रमा की किरणों के समान उज्ज्वल नमि जिनेश्वर ने इस भारतवर्ष को आलोकित किया। (16) शाश्वत शिव में निवास करने वाले नमिनाथ का निर्वाणगमन होने पर, समस्त जनों के लिए सुन्दर, चक्रवर्ती जयसेन का मैं चरित कहता हूँ। इस जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के उत्तर में गण5. AP Ogfca- 46. 1 6. Ap faffutors 1 7. AP read in place of this line and the three following as follows : चवर्षदणलवंगधिरायसल कुसुमणिबह णहणियडिय समसल। णाहह पयपणामु बिरयंसहि जयजयजय अरहंत भणंतहि। दिष्ण उरणलघोलिरहारहिं चुडामणिसिहि बलणकुमारहि । मप्पीभावजायतणुसलिहि वंदिवि बेहभप्पु परमेट्रिहि । (A विवि पेड भवपरमेठिहि) (16) 1. Aहुँ ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy