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________________ 10 80. 15.8] महाका-पुष्फयंत-बिरइया महापुराण [239 तेत्तिय केवलणाणपहायर मुणिवरिंद तणुविक्किरियायर। पंचसयाई एक्कसहसिल्लई मणपज्जवणाणिहिं णीसल्लई। साहहुँ' सहुं सोण गविट्ठई दोसयाई पग्णास जि दिदुई । जिणवरमग्गि णिवेसियसीसहं एक्कु सहासु महावाईसहं । मंगिणिपमुहहं हयमइमइयह पणचालीससहस' संजइयहं । एक्कु लक्ख सावयहं समासिउ तिउणउ सो सावइहि पयासि । 15 अमर असंख संख खग मृग जाह असहारद्धि वाणज्जई कि तहि । पत्ता-दोसहसई पंचसयायिई महि विहरिवि संवच्छरहं ।। पसुसुरणरखेयरविसहरहं धम्मु कहिवि मलियकरहं ।।144 15 दुबई—णभि संमेयसिहरिसिहरोबरि दूरुझियणियंगओ ॥ - अच्छिउ मासमेत्तु णिरु णिच्चलु पडिमाजोयसंगओ छ।। किरियाछिदणु शाणु रएप्पिणु तिषिण वि अंगई झ त्ति मुएप्पिणु । थियउ अजोइदेहु आसंघिवि पंचमंतकालत लघिवि । रिसिहि सहासे सहुँ णिव्वाणहु गउ परमप्पउ अच्चुयठाणहु । महिमंडलि रविकिरणहिं तत्तइ तहिं वइसाहमासि संपत्तइ । 'कसणचउद्दसिदिवसि समायइ णिसिविरामि छुडु छुडु जि पहायइ। णिक्कलु जायउ चंदफणिदहि पुज्जिउ देवदेउ देविदाह । धारी नियुक्त थे। केवल जान के धारी भी। विक्रियाधारक मुनिवरेन्द्र भी एक हजार पांच सौ थे। मनःपर्ययज्ञानी साधु बारह सौ पचास थे। शिष्यों को जिनवर के मार्ग में निवेशित करनेवाले एक हजार वादी मुनि थे। मंगिनी को प्रमुख मानकर मतिमद को नाश करने वाली पैतालीस हजार आयिकाएँ थीं । संक्षेप में एक लाख श्रावक, और तीन लाख श्राविकाएं प्रकाशित की गई हैं । अमर असंख्यात थे। तिर्यच (खग मृग) जहाँ संख्यात थे, वहाँ अरहंत की ऋद्धि का क्या वर्णन किया जा सकता है ! पत्ता-दो हजार पाँच सौ वर्षों तक धरती पर विहार कर, हाथ जोड़े हुए पशु सुर नर विद्याधरों और नागवेवों को धर्म कहकर-- (15) अपने शरीर का दूर से परित्याग करने वाले नमि जिनेश सम्मेदशिखर पर एक माह तक प्रतिमा योग में एकदम निश्चल रहे। वहाँ क्रिया-छेदोपस्थापना ध्यान कर तीनों शरीरों का सहसा परित्याग कर. अयोगदेह योग का आश्रय लेकर सिथत हो गए । फिर पंचम कालांतर का अतिक्रमण कर एक हजार मुनियों के साथ, वह परमात्मा अच्युत स्थान निर्वाण चले गए । भूमिमंडल के सूर्य की किरणों से संतप्त होने पर वैशाख माह के आने पर, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन, रात्रि का अन्त होने पर प्रभात में वह निकलंक (निष्पाप) हो गए । चन्द्र, फणेन्द्र और देवेन्द्रों 4. P सीहूं। 4. AP जिणवयमग्नें। 6. AP गयमयमझ्यहं । 7. A पंचसदिसहसई संजयहं । 8. AP मिग । (15) I.P.णियगओ। 2. AP पंचमत्त। 3. AP सहासहि। 4.A कसिण।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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