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________________ f241 80. 17.2] महाका-पुत्फयंत-बिरहमर महापुराण अस्थि खेत्तु णामें अइरावर्ड जणधणकणगोसंपयअइराव' । बुहमणोज्जु सिरिउरु तहि पट्टणु अमरणयरसोहादल वट्टणु। सहि णा भूवालु वसुंधर अतुलपरक्कम पवरवणुसरु । पउमावइ णामें तहु गेहिणि रण्ण व रविहि ससिहि णं रोहिणि। तहि विओयसोएं णिविण्णउ रज्जु सुविणयंधरि सुइ दिण्णउं । मणहरि वणि धम्ममुणीसपासि लइयउं तउ पावासबविणासि । जिणकहिइ विहिइ सणासु करिवि महसुक्कसरिंग हुउ अमरु मरिवि । भासुरतणु पावियअवहिणाण सोलहसायरजीबियपमाण । अह वच्छाविसइ विलासठाणु कोसंबीपरवरु सुहणिहाणु । तहि विजउ राउ अखलियपयाणु णियतेओहामियसरयमाण । पिय तासु पहकरि सुहणिवास सूहवगुणपूरियदसदिसास । दरकणयवण्ण विच्छिण्णकाय ण सग्गह अच्छर का वि आय। पत्ता-सग्गाउ चवेप्पिण' सो अमरु ताहि गभि अबइण्णउ ।। परिओसिउ सयलु वि बंधुयण, सत्तुबग्गु अद्दण्णउ 16|| 10 दुवई—सोहणदिणि सुरिक्खि णवमासहि पवरोयरविणिग्गओ ।। पुण जयसेणु णामु तहु विहियउं णियगइविजिदिग्गओ ॥छ।। वान् महान् ऐरावत क्षेत्र है जो जन-धन-कण और गौसंपदा से अतिक्षय रमणीय है। वहाँ पण्डितों के लिए सुन्दर, श्रीपुर नाम का पट्टन है जो इन्द्रपुरी की शोभा का दलन करनेवाला है। उसमें भूपाल नाम का राजा अतुल पराक्रमी और प्रबल धनुष का धारण करने वाला था । उसकी पद्मावती नाम की गृहिणी थी। वैसे ही, जैसे रवि की रण्णा और चन्द्रमा की रोहिणी । उसके वियोग शोक से विरक्त होकर, उसने अपने पुत्र विनयंधर को राज्य दे दिया। मनोहर बन में धर्ममुनीश्वर के पास, पापाश्रव का नाश करनेवाला तप ग्रहण कर लिया। जिनेन्द्र द्वारा कथित विधि से संन्यास ग्रहण कर, वह मरकर महाशुक्र स्वर्ग में अत्यन्त भास्वर-शरीर देव हुआ। अवधिज्ञान को प्राप्त किया है जिसने ऐसे उसकी सोलह सागर प्रमाण आयु थी। इसके बाद वत्सावती देश में बिलास का स्थान तथा सुख का निधान कौशाम्बीपुर था। उसमें अस्खलित प्रमाण राजा बिजय था जिसने अपने तेज से शरद-सूर्य को तिरस्कृत कर दिया था। उसकी प्रिया प्रभंकरी थी जो सुख की घर और अपने सुभगगुणों से दसों दिशामुखों को पूरित करनेवाली थी। श्रेष्ठ स्वर्ण रंगवाली कान्तशरीर वह ऐसी लगती थी मानो स्वर्ग से कोई अप्सरा आई हो। घत्ता-बह देव स्वर्ग से चलकर, उसके गर्भ में अवतीर्ण हुआ। समस्त बन्धु गण संतुष्ट हुआ, शत्रुगण खिन्नता को प्राप्त हुआ ।।16।। एक शोभन दिन और सुन्दर नक्षत्र में नव माह में वह प्रवर उदर से निकला। उसका जय 2. AP गोसपयसा रउं। 3. बहुमणोज्जु । 4. P 'गवर । 5. A गरेसरु। 6.A अंछर। 7. P चएप्पिणु । 8. AP आदण्णउ ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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