SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 234 महाकवि पुष्पवरत विरचित महापुराम [80.9.3 तडिविप्फुरणफुरियपविउलणहि वारिपूरपेल्लियसदिसिवहि । छुडु जि छुडु जि बप्पीहें घोसिउ छुडु जि छुडु जि केयइवणुः वियसि । छुडु जि कयंबगंधु उच्छलियउ छुडु पप्फुल्लउ मालइकलियउ। 5 छुडु पंथियपिययम उक्कंठिय छुडु छुनु बायस वासपरिट्ठिय। हरियतिणंकुरोहदिण्णाउसि वरिसमाणि छुडु पत्तइ पाउसि। लीला करदो इमान बणकोलाविहारि पहु णिग्गज। कडयकिरीडहारकुंडलधर ता थिय सुरवर गहि मउलियकर । विपणवंति पणवंति कयायर णिसुणि णिसुणि भो गुणरयणायर। 10 इह दीवंतरि पुवविदेहइ तहि वच्छावइविजइ सुगेहइ। दविणणिवेयकामुयकामहि णयरिहि "सुहलियसीमसुसीमहि । आयउ त्रम्महबाणकयंत अवराइयहु विमाणहु होतउ । घत्ता-णिज्जियमणु तवसिहितत्ततणु कम्मबंधणिण्णासयरु॥ अवराइउ णामें लोयगुरु तहिं उप्पण्णउ तित्थयरु ॥१॥ 10 दुवई--असरिसविसमविरसविससंणिहदुक्कियजलणजलहरा ।। __ आया तस्स चरणपणवणमण रविससहरसुरासुरा। छ।। काल में जबकि बिजलियों की चमक से विशाल आकाश चमक रहा है और सभी दिशापथ जलप्रवाहों से आपूरित हैं। चातक ने शीघ्र से शीघ्र घोषणा की, शीघ्र से शीघ्र केतकी वन खिल उठा । शीघ्र ही कदम्ब की गन्ध उछल पड़ी, शीघ्र ही मालती की कलियाँ खिल गई। शीघ्र ही पथिक प्रियतम उत्कण्ठित हो उठे। शीघ्र ही वायस घरों के ऊपरी भागों पर स्थित हो गए। जिसने हरे-हरे तिनकों के लिए आयु प्रदान की है ऐसे बरसते हुए पावस के प्राप्त होने पर; जिसने खेल-खेल में चरण के चलाने से गज को प्रेरित किया है ऐसा राजा वन-क्रीड़ा के लिए चला। तब कटक, मुकुट, हार और कुडल को धारण करनेवाले और हाथ जोड़े हुए देव आकाश में स्थित हो गए। किया है आदर जिन्होंने ऐसे वे प्रणाम करते हैं और निवेदन करते हैं. हे गुणरत्नाकर देव, सुनिए, सुनिए। इस द्वीप के पूर्व विदेह में सुन्दर गृहोंवाला वत्सकावती नाम का देश है। जिसमें कामुकों की कामनाएँ धन से निवेदित की जाती है तथा जिसकी सीमा अच्छी तरह फलित है ऐसी सुसीमा नगरी में कामदेव के बाणों के लिए यम के समान तथा अपराजित विमान से होता हुआ धत्ता-अपने मन को जीतनेवाला, तप की ज्वाला से संतप्त-शरीर, कर्मबन्धन का नाश करनेवाला, अपराजित नामक लोकगुरु तीर्थंकर उत्पन्न हुआ है। (10) असदृश विषम और विरस विष के समान दुष्कृत रूपी ज्वाला के लिए मेघ के समान, रवि, चन्द्रमा, सुर और असुर उनके चरणों में प्रणमन करने की इच्छा से आए। जिसमें अमर विला2.AP केइयवणु। 3. P कमलगंधु। 4. AP तणंकुरोह। 5. AP °कुडलहर | 6. A सुललिय। (10) I. AP णरविसहरसुरासुरा ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy