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________________ 80.9.23 महाका-पुप्फयंत:विरायउ महापुराण [233 दुबई-पुज्जिवि हविवि भणिज णमिजिणवर गुणमणिरुइरवण्णओ' । णाणत्तयसमेउ परमेसरु उज्जलकणयवण्णओ ।।छ।। आणिवि पुणु वि णिहित जणणहु घरि वढिउ जिणु कुमारु हंस व सरि वडिउ तवसंताउ व कामहु वढिउ दाहु व इंदियगामहु। वविउ मेहु व कोवढ्यासहु वड्ढिउ मंतु व भवभयतासहु। वडिउ हेउ व पवरसुहेल्लिहि बढिउ णवकंदु व दयवेल्लिहि । बढिऊ देवदेउ वररूवउ पण्णारधणुदेहु पहूयज। दससहास वरिसहं परमाउसु अड्वाइज्ज ताई कीलावसु । थिउ कुमार कुमरत्तणलीलइ पट्ट, णिबउ वियलियकालइ। वरिसह पंचसहासई खीणई रज्जु करतहु तहु वोलीणई। धत्ता-ता णवघणसमइ पराइयइ सुरधणु जणकोड्डावण ।। सोहइ उवरित्थु पयोहरहं णं णहसिरिउप्परियणउं 118!| दुवई--णाच्चियमत्तमोरगलकलरवि पसरियमेहजालए ।। पथसियपियहि दीहणीसासकहाणलधूमकालए ।।छ।। पूजा कर स्नान कराकर, गुणरूपी मणियों की कान्ति से रमणीय, तीन ज्ञान से युक्त और उज्ज्वल स्वर्ण वर्णवाले परमेश्वर को नमि जिनवर कहा गया। उन्हें लाकर, फिर से माता के गह में स्थापित कर दिया गया। सरोवर में हंस की तरह कुमार बढ़ने लगा। काम के संताप की तरह वह बढ़ने लगा, इन्द्रिय समूह के दाह के समान वह बढ़ने लगा । कोपरूपी हुताशन के लिए मेघ के समान वह बढ़ने लगा। भवभय के संत्रास के लिए मन्त्र के समान वह बढ़ने लगा। प्रवर सुख क्रीड़ाओं के कारण की तरह यह बढ़ने लगा। दयारूपी लता के नव अंकुर के समान वह बढ़ने लगा। सुन्दर रूपवाले देवाधिदेव बढ़ते गए और पन्द्रह धनुष प्रमाण शरीर वाले हो गए। उनकी परमायु दस हजार वर्ष की थी, उसमें ढाई हजार वर्ष क्रीड़ा में निकल गए । कुमार कौमार्य की लीला में रत हो गए। समय बीतने पर उन्हें पट्ट बाँध दिया गया। पांच हजार वर्ष क्षीण हो गए, राज्य करते हुए उनका (इतना) समय चला गया। पत्ता-तब नवधन का समय आने पर, मेघों के ऊपर स्थित, लोगों को कुतुहल उत्पन्न करनेवाला इन्द्रधनुष ऐसा शोभित हो रहा था मानो आकाश रूपी लक्ष्मी का उपरितन वस्त्र (दुपट्टा) हो। [811 (9) जिसमें मतवाले मयूर सुन्दर कण्ठ-ध्वनि से नृत्य कर रहे हैं, जिसमें मेघजाल प्रसरित हो रहा है तथा प्रवसतपतिका के लिए जो दीर्घ निःश्वासों से उत्पन्न अग्निघूम का समय है, ऐसे (8) 1. AP रुहवण्णभो। 2.A आणेपिणू णिहिउ । 3. सणुसंता3 1 4. AP झीणई। (9) I. AP पवसियमुक्कदीह ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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