SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 232] J महाकवि पुष्पदन्तविरचित महापुराणं ससिधवलपक्खि यहि जिfig fra भवरसि आयामरेहि सुल्लइ हंतु हणिवाणु जोइउ गरेह विभवणि ताव मुणिसुव्वयम्मि भावात" यस लख तयहुं अउन्ह पक्वंतरालि आणि रिष । जगकुमुमचंदु | संसारणासि । चलचामरेह् । किज दियंतु । वसु अप्पमाणु । पणत्रियसिरेहि । गवमास जाय । पालियवयम्मि | णिवाणपत्ति' । वरिसहं ससं । आसाढकण्ह carमरल | दिहि पणि । आणंदपुण्णि अइसुरहिवाइ धुंयगंधसलिलि कंती" कंति सुहसंगमेण तेलोक्कणाहु दुदुहिणिणरह सुरतिकमलि । दहमइ दिति । जायउ कमेण । अहमंदराहु | लिहि" तण | पयपणयधणच धत्ता - णिउ देवहि मंदरमहिहरहु पुज्जाविहि संमाणियउ || [80: 7.5 3 10 15 20 25 पडुपरिमंगलरविण जयजयस हाणियउ ||7|| हुई। जिसमें मेघों को अवकाश है इसे भाद्र माह के कृष्ण पक्ष में अश्विनी नक्षत्र में द्वितीया के दिन, संसार का नाश करनेवाले, विश्वरूपी कुमुद के लिए चन्द्र, जिनेन्द्र गर्भ में स्थित हुए। चंचल वाले आए हुए अमरों से आकाश आन्दोलित हो उठा, दिगन्त आच्छादित हो गया। लोगों ने प्रण सिरों से आकाश से गिरते हुए अप्रमाण धन को देखा। तब तक कि जब तक नौ माह हुए, जिन्होंने व्रत का पालन किया है ऐसे मुनिसुव्रत तीर्थंकर के, संसार भावना से परित्यक्त निर्वाण प्राप्त कर लेने के बाद जब साठ लाख वर्ष बीत गए, तब आषाढ़ माह के, जिसमें देवों का शब्द हो रहा है, जो आनन्द से पूर्ण है, जिसमें दिशामुख प्रसन्न हैं, जिसमें सुरों से अति आत दुभि का निनाद हो रहा है, सुगंधि जल बह रहा है, देवों द्वारा कमल बरसाए जा रहे हैं, जो क्रांति से सुन्दर है, ऐसे दसवीं के दिन, क्रम से शुभ संगम होने पर, त्रिलोक का स्वामी और जिसके चरणों में अहमेन्द्र प्रणत है, वप्पिला को ऐसा पुत्र हुआ । पत्ता - देवों के द्वारा उसे मन्दराचल पर्वत पर ले जाया गया, वहाँ पूजाविधि की गई। पटु, पटह और भेरि के मंगल स्वर और जय-जय शब्द के साथ उन्हें अभिषिक्त किया गया । 4. AP सखिप 5. AP हि णिवडमाणु। 6. A बसे। 7. AP गिब्वाम् । 8. AP गय लेसलश्च । 9. P कंतीसति । 10. AP वप्पिल्लहि ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy