SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 222]] 179. 11.7 महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण णं णासिउ बंधवसोक्खहेड अच्छोडिउ णं रहुवंसके। णं मोडिउ सुरतरुवरु फलंतु उल्हविउ पयावाणलु जलंतु । रिउसीसणिवेसियपायपंसु उड्डाविउ जगसररायहंसु । जहिं रावणु तहिं सो दुहपएसि । उप्पण्णु च उत्थइ णरयवासि । विहिणा सोसिउ गुणणिहिगहीर सोएण पमुच्छिउ रामु वीरु। सिंचिउ सलिलें माणवमहंतु उम्मुच्छिउ हा भायर भणंतु। घत्ता हा दहमुहणिहण हा लक्षण हा लच्छोहर ।। हा रयणाहिवद हा वालिहरिणकठीरव ।।11।। 10 12 धाहावइसीय मणोहिरामु एक्कल्लउ छंडिउ काइं रामु । हा' हे देवर महु वेहि वाय पई विणु जीवंतह कवण छाय । पूएप्पिणु दड्ढउं हरिसरीरु अवलंबिउ सीरें हियइ धीर। करयसिरु हाहारउ मुयंतु संबोहिज अंतेउरु रुयंतु । लक्खणसुउ णामें पुहइचंदु सई अहिसिंचिवि किउ कुलि रिदु । सत्तहि जणेहि सीर सुदण समिनिल्य गिरि पदम्भादि । लहुयारउ ताहं पग्गि णविउ अजियंजउ मिहिलाणरि थविउ । मानो बन्धुओं के सुख का कारण नष्ट हो गया हो, मानो रघुवंश का ध्वज ही नष्ट हो गया हो, मानो फला हुआ कल्पवृक्ष हो तोड़ दिया गया हो, मानो जलता हुआ प्रतापानल शान्त कर दिया गया हो। जिसने शत्रु के सिर पर अपने चरणों की धूल स्थापित की ऐसा विश्वरूपी सरोवर का वह राजहंस उड़ गया। जहां रावण है, उसी दुःख प्रदेश चौथे नरक में उत्पन्न हुआ । गुणनिधियों से गंभीर, विधाता के द्वारा शोषित राम शोक से मूच्छित हो गए। पानी छिड़कने पर वह मानव-महान्, 'हे भाई कहते हुए मूर्छा से दूर हुए। घता हा दशमुख का अंत करनेवाले, हा लक्ष्मण, हा लक्ष्मीधर, रत्नाधिपति, हा बालिरूपी हरिण के लिए सिंह ।।1 111 (12) सीता ने चीख कर कहा-तुमने राम को अकेला क्यों छोड़ दिया ? हा देवर, मुझसे बात करो। तुम्हारे बिना जीने में कौन-सी शोभा है ? पूजा करके लक्ष्मण का शरीर जला दिया गया। राम ने अपने मन में धैर्यधारण किया। अपने हाथों सिर पीटते और हा-हा शब्द कर रोते हुए उन्होंने अन्तःपुर को सम्बोधित किया। लक्ष्मण के पुत्र पृथ्वीचंद का अपने हाथ से अभिषेक कर उसे कुल का राजा बनाया। स्थूल बाहुवाले सीतादेवी के सातों पुत्रों ने लक्ष्मी की इच्छा नहीं की। उनमें सबसे छोटा तथा चरणों में नमित अजितंजय मिथिला नगरी का राजा बनाया गया। 5. A क्यासि। 6. A सोहिउ। (12) I. P हा देवर मह दे देहि वाय । 2. A रेप्पिण।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy