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________________ 79. 11.6] महाका-पुष्फयंत-चिरइयड महापुराण [221 जं अब्भपिसाएं गिलिउ भाणु चप्पिवि पाविउ महिविवरठाणु । तं संचिचिरुसुकयावसाणु परिपुण्णउं वट्टइ आउमाणु। जं णिवडिउं वरधवलहरसिंगु तं ध्र वुपोमामुहपोमभिंगु। माहउ पावेसइ देव मरणु पइसेव्बउ जिणवरचरणसरणु । तवचरणु चरेश्वउं पई रउद्द, लंघेव्वउ भीसणु भवसमुह ।। तं णिणिवि जयभीमाहवेज पुरि अभयघोसु किस राहवेण । अहिसित्तई जिणबिंबई जलेहि दुहिं धवलधारुज्जलेहि। दहिएहि कुंभगल्लत्थिाादि वरकामिणिकरणिम्मत्थिएहि । घत्ता--हवियई पुज्जियइंजिणवरपडिबिबई रामें ।। भत्तिइ वंदियई परिवढियसुहपरिणामें ।।10।। I पुरु घरु परिहाणु' हिरण्णु धण्णु जो जं मग्गइ तं तासु दिण्णु । संति वि विरयंतहं विहुरहम्म ढुक्कउं चिरसंचिउ घोरकम्मु । पुण्णक्खइ दुक्खु दुपेक्खु देंतु हयपरबलु भुयबलु णिक्खवंतु । कइवयदिणेहि सुहिदिण्णसोउ लच्छीहरंगि संभूउ रोउ। उप्पाइयबंधवहिययसल्लि माहम्मि मासि दिणि अंतिमिल्लि । काले कवलिउ महिअद्धराउ णं हित्तउ' कामिणिरइणिहाउ'। जाएँगे। राहु के द्वारा चांपकर निगले गए सूर्य ने जो महाविवर (पाताललोक) में स्थान पाया, वह जिसमें संचित चिरपुण्य का अंत है ऐसे (लक्ष्मण की) आयु के मान का अन्त है, और जो श्रेष्ठ धवलगृह का शिखर गिरा है, उससे लक्ष्मी के मुख रूपी कमल के भ्रमर लक्ष्मण निश्चित रूप मृत्यु को प्राप्त होंगे। हे देव, आप जिनवर के चरण में प्रवेश करेंगे, भयंकर तपश्चरण करेंगे, और भीषण भवसमुद्र को पार करेंगे। यह सुनकर, भयंकर संग्राम वाले राम ने नगर में अभय घोषणा करवा दी । जल से, धवलधाराओं से उज्ज्वल दूध से, तथा उत्तम स्त्रियों के करों से निर्मित दही से, पत्ता--जिनका शुभ परिणाम बढ़ रहा है. ऐसे राम ने जिनप्रतिमाओं का भक्तिभाव से अभिषेक किया, पूजा और बंदना की |10| (11) पुर, घर, परिधान, स्वर्ण और धान्य, जिसने जो मांगा वह दिया । शान्ति का विधान करते हुए भी उनको दुःख का घर चिरसंचित घोर कर्म आ पहुँचा। पुण्य का क्षय होने पर कुछ ही दिनों में दुर्दर्शनीय दुःख देता हुआ, शत्रुबल का नाश करनेवाले भुजबल को क्षीण करता हुआ, सुधीजनों को शोक देता हुआ रोग लक्ष्मण के शरीर में उत्पन्न हो गया । जिसने बन्धुओं के हृदय में वेदना उत्पन्न की है ऐसे मात्र माह के अन्तिम दिन, धरती का अर्ध-चक्रवर्ती राजा लक्ष्मण काल के द्वारा कवलित कर लिया गया, मानो कामनियों का रतिसमूह ही छीन लिया गया हो । 4.A मुकिया। 5. AP घुउ। 6. AP जिय'। 7. A दहिएण। (11) 1, " परिहण । 2. AP 5वें मग्गिउ। 3.A मंतिहि 1 4. AP °रयणिहाउ ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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