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________________ 220] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण [79.9.3 लक्खणहियव दुणियाणसहिउं तेण जि ब्रउ तेण ण कि पि गहिउं। दसरहि मुइ णिहिय णिरूढसयरि सत्तुहण भरह साकेयगयरि। गय भायर वाणारसि तुरंत थिय रज्जु करंत हली अणंत । रामें सुउ जायउ विजयराम सीयहि रूवें णं देउ कामु । अहिमाणणाणविणाणजुत्त अवर वि संजाया सत्त पुत्त । गोविंदहु णदणु पुहइचंदु पुहइहि हूयउ पुहईसबंदु। अण्ण विणं मत्तमहागइंद सुप संभूया जियरिउरिंद। गुणगणरंजियभुवणत्तएहिं परिवारिय पुत्तपउत्तरहिं । घत्ता-थिय भुजंत महि गउ कालु अकलियपरिषत्तउ' ।। एकहि णिसिसमद हरि फणिसयणि पस्त्तउ ।।9।। 0 पेच्छद्द सिविणंतरि पहिं मलिज णगोहु दंतिदंतमादलिउ । कवलेवि' विडप्– तिमिरजूरु कढिवि पायालि णिहित्तु सूरु । पासायसिहरणिवडणु-णियंतु उट्ठिउ महिवइ अंगई धुणंतु । अक्खिउ दुईसणु भायरासु ता भणइ पुरोहिउ ढुक्कु णासु । जिह बडतरुवर चूरिउ गएण तिह सिरिवइ भंजेव्वउ गएण' । खोटे निदान से युक्त था। इस कारण उसने कोई व्रत नहीं लिया। दशरथ के मरने पर, जिसमें राजा सगर प्रसिद्ध था, ऐसे साकेतनगर में शत्रन और भरत को स्थापित कर दिया गया। तब दोनों भाई तुरन्त वाराणसी चले गए। राम और लक्ष्मण वहाँ राज्य करते हुए रहने लगे। सीता से राम के विजयराम नाम का पुत्र हुआ, जो रूप में कामदेव था। गौरव, ज्ञान और विज्ञान से युक्त और भी उनके सात पुत्र हुए। रानी पृथ्वी से लक्ष्मण के पृथ्वीचन्द्र पुत्र हुआ जो पृथ्वी में और राजाओं में श्रेष्ठ था। उसके और भी पुत्र उत्पन्न हुए, शत्र राजाओं को जीतनेवाले जो मानो मतवाले महागज थे। इस प्रकार अपने गुणों से भुवनत्रय को रंजित करनेवाले पुत्र और प्रपौत्रों से घिरे हुए पत्ता-धरती का उपभोग करने लगे। उनका अगणित समय बीत गया। एक रात्रि के के समय लक्ष्मण नागशय्या पर सोए हुए थे। (10) स्वप्न में वह देखते हैं कि वटवृक्ष हाथी के दांतों के अग्रभाग से दलित और पैरों से कुचला गया है। राहु ने चन्द्रमा को निगल कर और सूर्य को खींचकर पाताललोक में डाल दिया है। इस प्रकार राजा प्रासाद के शिखर का पतन देखता हुआ और अपने अंगों को पीटता हुआ उठा। उसने वह दुःस्वप्न और भाईयों को बताया। उस समय पुरोहित कहता है-नाश आ पहुँचा है। जिस प्रकार गज के द्वारा वटवृक्ष नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया, उसी प्रकार लक्ष्मण रोग से मारे 2 AP 43। 3. A दस रहसुपविहिए। 4. AP वाराणसि। 5. P अवर वि जामा तह सत पुत्त। 6. P. गय। 7.A अहियपरिचत्तउ। 8.A फणिसयणयलि; Pमणिसयणि । (10) I. A कवलियउ। 2. P°णियण। 3.A यमेण: Pमएण।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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