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________________ 79. 13. 12] महाका-पुष्पयंत-विरहया महापुराण [223 साकेयणयरि सिद्धत्थणामि दणि परिभमंतचलभसलसामि । सीराउहेण भयमोहणासि तवचरण लाइन सिवगुत्तपासि । पत्ता-तहिं रामेण सहुं सुग्गीउ वि सुद्धविवेयउ' ।। हणुउ विहीसणु वि पावइयउ जायणिग्वेयउ ।।12। 13 राएं जाएं इसिसीसएण तणयहं तउ लइउ असीसएण । सीयापुहइहिं सुयवइहि पाय आसंघिय भावें चत्तराय। भुवणुट्ठिउ तिढावज्जियाउ जायाउ ताउ तहिं अज्जियाउ । पता नेणिनि णिम्मयिकाम सुयकेवलित्तु हणुयंतु राम । इयर वि संजाया रिद्धिवंत मुणिवर णिठ्ठरतवतावसंत। आहुट्ठसयाई गयाई तासु संवच्छराहं पालियवयासु। पंचहि बरिसेहि विवज्जियाई __ जइयतुं तइयतुं ध्र वुणिज्जियाई। रामें चउकम्मई घाइयाई अमररिं कुसुमाई णिवेइयाई । उप्पण्णउं केवलु विमलणाणु दिट्ठउं तिहुयणु गयणु वि अमाणु। खणि सुरयणु संप्रायउ णवंतु जय गंद बद्ध रहुवइ भणंतु । 10 धत्ता-एक्कू जि छत्त तह पोमासण चमरई चघलई॥ देवहि णिम्मियई तारातारावइधवलई।।13। साकेत नगर के, भ्रमणशील चंचल भ्रमरों से से श्याम सिद्धार्थ नामक वन में राम ने शिवगुप्त मुनि के पास मद-मोह का नाश करने वाला तपश्चरण ग्रहण कर लिया। घत्ता-वहाँ राम के साथ शुद्ध विवेको सुग्रीव, हनुमान् और विभीषण ने भी बैराग्य उत्पन्न होने से संन्यास ग्रहण कर लिया ।।12॥ (13) राजा राम के ऋषि-शिष्य होने पर, एक सौ अस्सी पुत्रों ने भी तप ग्रहण कर लिया। सीता और पृथ्वी देवी ने भी श्रुतव्रता आर्यिका के रागशून्य चरणों का भावपूर्वक आश्रय लिया। संसार से विरक्त, तृष्णा से रहित वे दोनों वहीं आर्यिकाएँ बन गईं। कामदेव का नाश करनेवाले हनुमान और राम दोनों श्रुतकेवलित्व को प्राप्त हुए। दूसरे मुनिवर भी निष्ठर तप का आचरण करते हुए ऋद्धियों से पूर्ण हुए। नतों का पालन करते हुए उनके साढ़े तीन सौ वर्ष बीत गए। जब पाँच वर्ष शेष रह गए तब राम ने निश्चित रूप से चार घातिया कर्मों को जीत लिया। देवों ने पुष्पों की वर्षा की । उन्हें पवित्र केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। निःसीम गमन के समान उन्होंने त्रिभुवन को देख लिया। क्षण भर में, प्रणाम करते हुए तथा हे राम आपकी जय हो, आप प्रसन्न हों और बड़े यह कहते हुए देव आए। पत्ता-उनका एक ही छत्र, कमलासन था । देवों ने ताराओं और चन्द्रमा के समान धवल चंचल चामर निर्मित कर दिए ।।13।। 3. AP सिवोत्त । 4.P अइसुविवेयउ। (13) 1. AP मुक्कमाय 1 2. AP भवणुय तिहाणिज्जियाउ । 3. AP धुउ। 4. A सयस वि। 5. AP संपाउ16. Aणमंतु। 7.AP धवल।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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