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________________ 30] महाकवि पुष्पवंत कृत महापुराण रावण का सामतवादी दृष्टिकोण प्रेम प्रसंग में बहन से बढ़कर विश्वसनीय दूती दूसरी नहीं हो सकती, हालांकि सभी बहनें दूती नहीं होती। रावण चन्द्रनया की बात भी नहीं मानता यद्यपि बह कहती है कि चाहे रागद्वेष जिनेन्द्र को नष्ट कर दे परन्त तुम सीता जैनी सती का उपभोग नहीं कर सकोगे ।" रावण का उत्तर है, जो अच्छा लगे उसे अवश्य वश में करना चाहिए। क्या सांप के भम नागमणि को छोड़ दिया जाए? वह सीता के सतीत्व में विश्वास नहीं करता। उसका तर्क है कि सन की सज्जनता, पुरिष की प्रभुता, पहारकी हरियाली और सती का सतीरव, दूर तक रहते हुए ही सुनने में अच्छे लगते हैं । पास आने पर वे तार-तार खण्डित दिखाई देते हैं "अवसु विमति किम्बइ जं रुच्चा, किविसमस्या फणिमणि मुच्चाह अलसा सिरितूरेग पबच्चा। सुहिसयणत्तम पुरिसपत्तगु, गिरिमसिणत्तणु सहहि सइत्तणु । दूरयरस्थ सूर्णतह चंग पासि असेसु बिपरिसियभंग।" (महापुराण 71/21) सीता को देखकर रावण को प्रतिक्रिया है कि जो ऐसे स्त्रीरत्न का मोग नहीं करता उसे घरवार छोड़कर मुनि होकर वन में चले जाना चाहिए । रावण बब सीता से कहता है : "राम-लक्ष्मण की बात छोड़ो, दशरथ भी मेरा दास था। जब सिरका पढामणि उपलब्ध हो, तो पैरों के आभूषण का क्या करना?नौकर की स्त्री को देह का क्या गौरख? खड़ाऊँ को मणिमण्डन से क्या ? मेरी दासी होते हुए भी तू महादेबी हो सकती है। माती हुई लक्ष्मी को हाय मत दे!" तो इसमें नारी के प्रति उसके सामंतवादी दृष्टिकोण की स्पष्ट मलक मिलती है। कवि और प्रकृति का आक्रोश स्वर्णमृग दिवाकर रावण जन सीता का अपहरण करता है तो पुष्पदंत का कविहृदय सीता के चरित्र की ढ़सा की तुलना उस सुघट से करता है जो अंतिम क्षण तक अपने परिकर को नहीं छोड़ता (72/7)। पति के बियोग से अस्तव्यस्त सीता विधिवश, रावण के हाथ से छूटकर पहाड़ी प्रदेश में स्वलित हो जाती है, उस समय वह ऐसी प्रतीत होती है, जैसे स्वर्णनिमित पुतली हो "ण वाहिलय कामडिय ।" (72/7) फिर बेहोश होने पर भी उसका हाथ परिघान से नहीं हटता। जार (रावण) की चंचल दृष्टि उस पर कैसे घूम सकती है? "परिहाण ण तो वि ताहि हलाइ, पल जार दिदि कहि परिघुला।"
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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