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________________ [29 मालोचनात्मक मूल्यांकन मनुष्य की पवित्रता की कसौटी मनुष्य की पवित्रता उसके आचरण की पवित्रता है । यदि गंगा का जल पवित्र है तो वह मलमूत्र क्यों बनता है ? गंगा का स्नान यदि पापों का हरण करनेवाला है तो फिर मर्यालयों को मोक्ष क्यों नहीं होता? यवि मिट्टी देह में लगाने से अंधकार दूर होता है तो सुअर को स्वर्ग विमान में होना चाहिए ? यदि मगचर्म धर्म से उज्जवल है तो मृग समूह को दुनिया में श्रेष्ठ होना चाहिए ? इसलिए जो विज मांस खाता है, वह प्रेष्ठ नहीं हो सकता । यदि दूब (दर्भ) से धर्म होता है तो भृगकुल धरती में क्यों भटकता फिरता है ? वह रात दिन घास चरता है, फिर इन्द्र के विमान में क्यों नहीं प्रवेश करता? गाय या काकपंख के स्पर्श से अथवा सोकर उठने पर पी देखने से यदि पाप नष्ट होते हैं और लोग प्रवर (देव/बड़) बनते हैं तो बैलों और कौओं को स्वर्ग में देव होना चाहिए? निस्कर्ष यह कि मनुष्य की पवित्रता की कसौटी हिंसक कर्मकाण नाहीं बल्कि दूसरे को अपने समान रामझना है 'जो पह अप्याण सम्गण' दूती प्रसंग और नारी मूल्य मारीच के परामर्श पर, रावण अपनी बहन चन्द्रनखा को सीता के पास बूती बनाकर भेजता है। वाराणसी के निकट चित्रकूट वन में सीता को देखकर पहले तो विद्यधारी चन्द्रनया सोचती है कि सीता मान को चूर-चूर करने वाली उर्वशी, गौरी, तिलोत्तमा और रंभा से भी अधिक रूपवती है, वह काम की मल्लिका है : यद विनारती हुई वह शीघ्र बलिया बन जाती है और युवतियों का मनोरंजन करने लग जाती है। एक रानी पूछती है--"तुम कौन हो ! फिस लिए यहाँ आई ? क्या देख रही हो ? चित्रलिखित की तरह क्यों रह गई हो।" उत्तर में दती कहती है-"मैं यहां के पनपाल की माँ है । मह बताओ कि पूर्वभाव में तमने क्या प्रत किया था जिससे तुम्हें यह रूपराशि मिली ? मैं उस व्रत को करना चाहती है।" यह सुनकर सीता ने उसे डांटा, "तुम स्त्रीत्व क्यों चाहती हो? यह तो सबसे खराब है। रजस्वलाकाल में वह चंडाल तरह है । उसे कभी अपने वंश का स्वामित्व नहीं मिलता। किसी एक कुल में उत्पन्न होती है और बड़ी होने पर किसी दूसरे के द्वारा ले जाई जाती है । स्वजन के निधन पर आठ-आठ आंसू बहाती है। जब घर में कोई मंत्रणा की जाती है तो कोई उससे नहीं पूछता। जब तक वह जीती है वह परवश जीती है। फिर उसे जैसा भी पति (अभागा, दुष्ट, दुर्गन्धयुक्त, दुराशयी, अंघा, बहरा, पागल, गंगा, असहिष्णु, निर्धन और कुटिल) मिले उसी को स्वीकारना पड़ता है। उधर चाहे चक्रवर्ती हो या इन्द्र, कुलगुणधारी स्त्री होकर उसे पितातुल्य मानना चाहिए। अपनी कुल मर्यादा का उल्लंघन करना ठीक नहीं। इस नारी जीवन से क्या ? विधवा पन में सिर घटाओ और तपश्चरण से स्वयं को वण्डित करो। मूक बचपन में पिता रक्षा करता है, जवानी में पति रक्षा करता है, उसी प्रकार बुढ़ापे में बेटा रक्षा करता है जिससे वह कूल में कलंक न लगाए। उसका घूमना-फिरना दूसरों के अधीन है। घर यानी सोने और खाने के जेलखाने से महिला की मुक्ति नहीं । बुढ़ापे के समय बुड्ढी होने पर जो महिसापन अत्यन्त अभागा होता है, उसमें आग लगे, वह तुमने क्यों मांगा ?" सीता की यह प्रतिक्रिया सुनकर दुती का मुख स्याह हो जाता है । वह समझ जाती है कि सीता के चरित्र का खंडन संभव नहीं। इसके दृढ़ संकल्प के सामने मेरी धूर्तता नहीं चल सकती । वह नौ दो ग्यारह हो जाती है । यह तो हुआ एक पक्ष । उक्त कथन का दूसरा पक्ष यह है कि इसमें मध्ययुगीन भारतीय नारी (कुलीन) की स्थिति और पीड़ा की यवार्य अभिव्यक्ति तो है परन्तु उसका समाधान आध्यात्मिक है । (महापुराण 72/22)
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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