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________________ होता है ? मान [31 फिर भी परस्त्री का लोभी वह दुष्ट वहाँ आ धमकता है। गाँव का कुत्ता कभी लज्जिज अब प्रकृति की प्रतिक्रिया देखिए " गिरते हुए, अपने लाल कोपलों से वृक्ष रो रहा है कि है रावण, तू दूसरे की स्त्री क्यों लाया ? वन अपनी शाखाएं उठाकर कह रहा है कि हाय नारीरश्न का मरण का पहुंचा ! भ्रमर कान के पास गुन गुना कर कहता है, है स्वामी, यह अनुचित है। राषण परस्त्री के सुख की इच्छा करता है यह देखकर शुक टेढ़ी नजर करके चला जाता है। जैसे वह भी रावण से उद्विग्न हो । कोयल भी विलाप करती हुई कहती हैआदरणीय रावण, तुम सीता से तभी रमण करो यदि तुम अपना अपयश मुझ जैसा काला चाहते हो। लोकप्रिय हंसाबलि कहती है- तुम्हारी कीर्ति मेरे समान सफेद है। इस स्त्री का उपभोग कर तुम उसे मेला मत करो और लंकापुरी के ऐश्वर्य को नष्ट मत करो। लाल-लाल कोपलों वाला मामवृक्ष ऐसा मालूम हो रहा है, मानो राजा के अन्याय की ज्वाला से मारक्त हो उठा हो "रावण, किं प्राणिय पर जुव तद सिहं । बगु गाई करइ साहद्धर हा पत्त नारियणमरणु । अति कष्णा सण दणुराण एवं अनुणाई भणह । इच्छ दससित पश्मणि सुहं कजल बंकि बिजाइ गृहं । सो विनिवहु उबेइम कोड बिल व आइच । सुमन महणिह महहि जह बइदेहि भडारा रमहि तह । हंसावलि लव व सोमापय नई मेही तेरी किशि सिय मा महलहि मावि एहतिय मा णासहि लंका उरिहि सिप । मंब लोहिम पल्लवल लिट णं निमग्नावसिहि अलिउ (728) सतापुरुष द्वारा नैतिक मूल्यों की खुली अवमानना पर कवि केवल आक्रोश व्यक्त कर सकता है, पर कभी-कभी उसकी छाया प्रकृति में देखता है, जैसा कि हिन्दी की नई कविता में हो रहा है। क्तियाँ, लोकोक्तियाँ ग्यारह सन्धियों का काव्य होते हुए भी पुष्पवन्त का यह रामायण काव्य ( पोम चरित) भाषा और शैली की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध है । उसमें सूक्तियों और लोकोक्तियों की भरमार है। उदाहरण के लिए कुछेक सूक्तियाँ द्रष्टव्य है---
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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