SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 196] महाकवि पुष्पवरत विरचित महापुराण 178.15.6 रावणेण मेरु चंड लक्खणेण वज्जदंडु । रावणेण बाबा मेमा रिही। रावणेण वारिवाह लक्खणेण गंधवाहु । रावणेण चिच्चिजाल लक्खणेण मेहमाल । राबणेण दंति दीहु लक्खणेण मुक्क सीह। रावणेण रक्खसिंदु लक्षणेण खेजविंदु । रावणेण रत्तिणाहु लक्खणेण मुक्क राहु। रावणेण मुक्कु रुक्खु लक्खणेण दुण्णिरिक्खु । पज्जलंतु जायवेउ दिग्गयग्गलग्गतेउ। घता-सुरसमरसमत्थें विज्जासत्थे जेण जेण रावणु हणइ ।। पंडिवक्खोहूएं भासुररूतं तं लकखणु णिल्लुणइ ।।१३।। 16 दुवई-ता धगधगधगंतु खयजलणु वखेयरलच्छिमाणणो॥ ___ खणि बहुरूविणीइ बहुरूवहिं उद्धाइउ दसाणणो ॥छ।। गयवरि गयवरि हयदरि हयवरि रहवरि रहरि परवरि परवरि। नेगरि अभिडंति पवरामरि छत्ति विमाणि जाणि धइ चामरि । चउहं मि पासहिं भडु भीसावणु' जलि थलि महियलि पहलि रावणु। 5 वीसपाणिपरिभामियपहरणु तिणयणगलतमालसंणिहतणु।। प्रचंड मेरुबाण छोड़ा, लक्ष्मण ने वनदंड। रावण ने शीघ्र अश्वबाण छोड़ा, लक्ष्मण ने प्रचंड महिष बाण। रावण ने मेघबाण छोड़ा, लक्ष्मण ने पवनबाण। रावण ने अग्निबाण, लक्ष्मण ने मेघमाल । रावण ने दीर्घगज छोड़ा, लक्ष्मण ने सिंहबाण । रावण ने राक्षसेन्द्र, लक्षमण ने क्षेमवद । रावण ने कामबाण छोड़ा, लक्ष्मण ने राहु बाण । रावण ने रूक्ष बाण छोड़ा, लक्ष्मण भी, जिसका तेज दिग्गजों के अग्र भाग को लग रहा है ऐसा, अग्निबाण छोड़ा। पत्ता-देव-युद्ध में समर्थ जिस-जिस विद्याशस्त्र से रावण आक्रमण करता, उसके प्रतिपक्षीभूत तथा भास्वर रूप उस-उस बाण से लक्ष्मण उसे नष्ट कर देता। (16) तब प्रलयाग्नि के समान धक-धक करता हुआ लक्ष्मी का अभिमानी, विद्याधर रावण क्षण-क्षण में बहुरूपिणी विद्या के साथ दौड़ा। गजवर-गजवर पर, अश्ववर अश्ववर पर, रथवर रथवर पर, नरवर नरबर पर, खेचरप्रवर अमर, छत्र विमान यान ध्वज और चामरों पर जा भिड़े। चारों ओर भयंकर योद्धा रावण पल में जल, थल, महीतल और नभतल में था। अपने बीसों हाथों से अस्त्रों को घुमाता हुआ, शिवकण्ठ और तमाल के समान शरीर वाला, गुंजाफलों के समान अरुण नेत्रवाला, मारो-मारो 2. A सेरिहासु; T सेरिहेसु । (16) 1. AP धगधगंतु । 2. AP°वणीए । 3. A पउरामरि; P पउरपबरामरि । 4. P भीसामणु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy