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________________ 78. 17.3] महाका-पुत्फयंत- दियउ महापुराणु 197 गुंजापुंजसरिसणयणारुणु । हणु हणु हणु भणंतु रणदारुणु । अग्गइ पच्छइ चंचलु धाव मणहु वि पासिज वेएं पावइ । गयकुभयलई पायहि पेल्लइ झ ति दंत उम्मूलिवि पल्लइ। परिभमंतकरिवरकर वंचइ हिस्खई गेज्जावलिय णिलुचई । 10 सारिउ कसमसंति मुसुमूरइ अंतरसेणासणिय वियारइ। विलुलियकण्णचमर अच्छोडइ कच्छोलंबिय घंटिय तोडइ । असिणा दारह मारइ मयगल घिवइ णहंगणि चलमुत्ताहल। पत्ता-भीमाहवचंडहिं" दवभुयदंडहिं त्रप्पिवि हुंकरेवि धरह। करि रोहइ जोहइ करणहि मोहइ दसणविहिष्णु" विणीसरह ।।16।। 15 17 दुवई-फोडिवि सवारसीसक्कई सिरई सकवयगत्तई॥ शिदिवि पक्खराउ हय मारिवि परियाणई विहित्तई छ।। गयणयलि लग्गेवि कहकहरवं हसिवि बहुरूविगी रामकेसवहं गय तसिवि । ता' रक्खधयलक्खणा गुलुगुलंतेहिं रिउदुज्जया लोहदढमढियदंतेहि। णवजलहरेहि व जललव मुयंतेहिं चलकण्णतालेहिं सुरगिरिमहंतेहिं । कहता हमा, युद्ध में भयंकर रावण चंचल हो आगे पीछे दौड़ता है। मन से भी अधिक वेग से वह जाता है। गजकुंभ-स्थलों को वह पैर से पेल देता है, शीघ्र ही हाथी के दांतों को उखाड़ देता है, घूमते हुए करिवरों को संडों से वंचित करता है, ग्रीवा से क्षुद्र घंटिका रूपी नक्षत्रों को तोड़ लेता है। कसमसाते हुए गज-पर्याणों को मसल डालता है। सेना के भीतर स्थित लोगों को विदीर्ण कर देता है। चंचल कर्ण रूपी चमरों को छिटक देता है। कच्छा (झूल) से लटकती हुई घंटियों को तोड़ डालता है। सलवार से हाथियों को विदारित कर मार डालता है और मुक्ताफलों को आकाश में बिखेर देता है। घत्ता-भीमयुद्ध में प्रचंड दृढ़ भुजदंडों से चाँपकर और हुंकार कर वह हाथी को पकइता है, उसे रोकता है, देखता है, आवर्तन आदि घेष्टाओं से उसे मोहित करता है और दांतों से विभक्त होने पर भी उनमें से निकल आता है। (17) अश्वारोहियों के शिरस्त्राणों, सिरों और कवच सहित शरीरों को नष्ट कर, कवधों को काटकर, अश्वों को आहत कर, उनके पर्याणकों को विभक्त कर देता है। आकाशतल से लगकर कहकहाकर हंसता है। इस प्रकार बह अनेक रूपों में राम लक्ष्मण को प्रस्त करके चला । तब राक्षस-ध्वजियों के समान लक्षणवाले, शत्रु के लिए अजेय वे दोनों, जिनके दांत लोहे से खूब मढ़े हुए हैं, जो मेघों के समान जलकण छोड़ रहे हैं, जो चंचल कर्णतालों से युक्त हैं, जो सुमेर 5. PA घावइ । 6. A 'करि वचइ । 7. AP. रिवखें। 8. AP घंटउ । 9. A भीमाह । 10. P विहित। (17) 1. AP तोडिवि। 2.बिहतई। 3. A ताररक्षय :P तो रक्सनयं । 4. P गलिय।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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