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________________ 10 15 78. 15.5] महाका-पुष्फयंस-विरहपत महापुराण [195 अज्जु तुज्झु परमाउसु पुण्णउं जिह तृयरयणु कुसील ण दिण्णउं। मई मुक्काई दसास णियच्छहि तिह एवहिं पहरणई पडिच्छहि । कयसमरेण गहियरिउजीवें तं णिसुणेवि वुत्तु वहगी।। तल्लरजलि कइलासु'वि जलयरु अदुमगामि एरंडु वि तरुवरु । खलसुग्गीयरामणलहणुयहं तारकुंदकुमुयह खगमणुयहं । एयह मज्झि तुहं मि भडु भण्णहि तेण बप्प मइं रणि अवगण्णहि । मुइ मुइ तेरउ आउहु केहउं महु मयंगमसयंतर जेहउं । भण विक्रीस जज्झसमत्थहं पह मेल्लेसह मायासत्थई। चिंतहि तुहं पण्णत्ति जणदण लहु करि मायावाहण पहरण । घत्ता-तं तेम करेप्पिणु भुय विहुणेप्पिणु अभिट्टउ दहमुहहु हरि। कइयणवयणुत्तिहि महणपवित्तिहि गाइ समुह सुरसिहरि ।। 14॥ 15 दुवई-बेण्णि वि पीयवास बेण्णि वि णीसंजणगरलसामया ।। दोहि मि 'कुलिसकपकसंकुसवस चोइय मत्तसामया ॥छ।। बे वि कुद्ध बद्धठाण मुक्क तेहि दिव्व बाण। रामणेण मुक्कु णाउ लक्खणेण पक्खिराउ। रावणेण अधयारु लक्खणेण मुक्क सूरु । परम आयु पूर्ण हुई। रे कुशील, जिस प्रकार तू ने स्त्रीरत्न को नहीं दिया उसी प्रकार रे दशमुख, मेरे द्वारा छोड़े गए प्रहरणों को देख और उन्हें स्वीकार कर। यह सुनकर युद्ध करने वाले, तथा जिसने शत्र के प्राण ग्रहण किए हैं, ऐसे दशानन ने कहा-छोटे तालाब में कछुआ भी कैलाश है ! बिना पेड़ के गाँव में एरंड भी वृक्षवर है। दुष्ट सुग्रीव, राम, नल और हनुमान्, तारकुंद, कुमुद तथा विद्याधर मनुष्यों के मध्य तुम भी भट कहलाते हो ! इसीलिए युद्ध में तुम मेरी उपेक्षा कर रहे हो । छोड़ो-छोड़ो, तुम्हारे आयुध में उतना ही अंतर है जितना कि हाथी और मशक में। विभीषण कहता है-स्वामी, युद्ध में समर्थ यह रावण मायावी अस्त्र छोड़ेगा। हे लक्ष्मण, तुम प्रज्ञप्ति विद्या का चितन करो, तुम शीघ्र ही मायावी अस्त्र ले लो। घत्ता-तब उस प्रकार कर, अपनी भुजाओं को ठोक कर, लक्ष्मण दशमुख से भिड़ गया जैसे स्वरश्रेष्ठ कविजनों की उक्तियों से तथा मंथनप्रवृत्त देवपर्वत (सुमेरु) समुद्र से भिड़ जाता है। (15) दोनों के पीले वस्त्र थे। दोनों हो नीलांजना और गरल की तरह श्याम थे। दोनों ने ही घष के कठोर अंकुश से वशीभूत मतवाले श्याम गज प्रेरित किए। वे दोनों ही बद्धलक्ष्य थे। दोनों ने दिव्य बाण छोड़े। रावण ने नागबाण छोड़ा, लक्ष्मण ने गरुड़गज तीर छोड़ा । रावण ने अंधकार बाण छोड़ा, लक्ष्मण ने सूर्यबाण। रावण ने 2. AP तिपरयणु । 3. AP बुत्तउ । 4. A किकलासु; T किकलासु परेवकः (१) अथवा किकालसु कुरुविलः (?); K records ap: अथवा किकलासु कुरुविल जीवं न तु गजमत्स्यादयः, 5.P मयंगसमयंतरू। (15) I.A कुलिसचमकसंकुस'
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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