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महाकवि पुष्पवन्त विरचित महापुराण
संदण मुसुमूरिवि घल्लिय छड छुड रामु धामु जा दावइ tara जुज्झि वावरइ सहोमरु This frसुणि देव सीराउ राम राम रामामणहारण हर्जन
कटोरकिपल
जीवमि जाम वइरिमारणविहि ताव एउ पई पविच्छुरियउं
पडिमयगल' मायंगहि पेल्लिय । जान खगिंदु रहेंगु विहावइ । तावंतरि पठ्ठे दामोयरु । वीर पउम चुंबियपमा मुह । सुबलासुर अरिविदवियारण । भाइ तुम पविरोलियपरबलु | afr" रयणियविधणिव तरुसिहि । सई करेण किं पहरणु धरियजं ।
धत्ता — रक्खियकुलगिरिपरि हउं तेरउ हरि मुइ मुइ मई आलद्धजन || पविखरसरणहरहिं अविरलपहरहिं दारमि दहमुह मत्तगज ॥13॥
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दुबई --ता रामेण कण्डु मोक्कल्लिउ' बोल्लिउ तेण दहमुहो || रे अपवित्त धुत्त परणारीरत म थाहि समुहो || छ
विहिदुव्विलसिउं तुहुं वि महीसरु कुई तुह दहमुह हव
ओसरु ओसरु मा संधहि सरु । राहवरायपायराईवरं ।
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कर फेंक दिए गए। मदगजों के द्वारा प्रतिमदगज पीछे धकेल दिए गए। शीघ्र जब तक राम अपने धाम को दिखाते हैं और जब तक विद्याधरेन्द्र रावण चक्र दिखाता है। और जब राम युद्धव्यापार करते हैं, तब तक सहोदर लक्ष्मण वहाँ प्रविष्ट हुआ। उसने कहा- हे देव, लक्ष्मी का मुख चूमने वाले वीर पद्म (राम) श्री राघव, हे राम-राम, ललनाओं (स्त्रियों) के मन को हरण करने वाले, सुबला के सुत, शत्रु समूह का नाश करने वाले हे राम, विशाल और कठोर करतल वालाशत्रुबल का मंथन करने वाला मैं तुम्हारा भाई जब तक जीवित हूँ तब तक शत्रुओं के लिए मारणविधि एवं निशाचर-ध्वजी नृप रूपी वृक्षों के लिए आग हूँ। तो फिर अपनी प्रभा से विच्छुरित यह अस्त्र भला आपने अपने हाथ में क्यों धारण किया ?
घत्ता - जिसने कुल रूपी गिरि की घाटी की रक्षा को है, ऐसा मैं तुम्हारा सिंह हूँ । आलब्धजय, तुम मुझे छोड़ो-छोड़ो, वज्र और तीव्र तीर रूपी नखों और अविरल प्रहारों से मत्तगज दश मुख का विदारण मैं करूँगा ।
4. AP पडिमयंग 5. A देव णिसुणि 6. AP कठोर° 7. A परितोलिय । 8 A जण रय । ( 14 ) 1 A मोकलियउ ।
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तब राम ने लक्ष्मण को मुक्त कर दिया। उसने रावण से कहा- रे अपवित्र धूर्त, परस्त्री में रत, तू मेरे सम्मुख मत ठहर । भाग्य से दुर्विलसित तू भी महीश्वर है। हट जा हट जा, तू शरसंधान मत कर। राजा राघव के नखों से प्रदीप्त चरणकमल तुझ पर क्रुद्ध हैं। आज तेरी