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________________ 10 78.5.4] महाकह-पुष्फयंत-बिरहज महापुराणु 185 लुयकरसिरउरजण्हुयजुत्तइ माणगणविच्छेइयछत्तई। कलिकेलासवाससंतासई वइरिविलासहासणिण्णासइ । मायाभावगाववित्थारई हुयवहवरुणपवणसंचारइ। किलिकिलिरवसोसियकीलालाइ दिसविदिसुट्टउमावेयालइ। मिलियदलियपक्कलपाइक्कई वसकद्दमणिमण्णरहवाकई। अंतमिलतथंतकायउलाई वालपूलणीलियधरणियलइ । तणुवियलंतसेयसित्तंगई पविखपक्खमरुयसमसंगई। मयगलमलणमलियधयसंडई हित्तारोहजोहकोवंडई। सुरहरविणचित्तखरिदइ खम्गकंपकंपावियचंदई । घत्ता-- --असिदंडु लएप्पिणु देहि भणेपिणु परवलि परिसरकइ वियडु ।। फरपत्तधिहत्यउ को वि समत्थउ जुज्झभिक्ख' मग्गइ सुहडु 14॥ 5 दुवई- महा करेहि गहएहि हि विडंकरसई ।। कोक्कइ मासगासरसियाइपिसायई गयणि जंतइ ॥छ।। को वि सुहडु मुउ करिदंतेतरि णावइ सुत्तउ णियजसपंजरि। को वि सुहडु अद्धिदें मंडिउ भूयहिं रुद्द व णिविसु ण छेडिउ । और जानुओं से युक्त है, जहाँ तीर समूह से छत्र काट दिए गए हैं, जो यम और शंकर को संत्रास देने वाली है, जो शत्रुओं के विलास और हास का नाश करने वाली, मायाभाव और गर्व का विस्तार करनेवाली, अग्नि पवन और वरुण के पथ पर संचार करनेवाली, किलकिल शब्द से रक्त का शोषण करनेवाली है, जिसमें दिशा-विदिशा में उग्र वैताल उठ रहे हैं, जिसमें समर्थ सैनिक मिलकर एक दूसरे को चकनाचूर कर रहे हैं, जहाँ रथचक्र चर्बी की कीचड़ में निमग्न हो रहे हैं, जहाँ काककुल आँतों से मिलकर स्थित हैं, जहाँ धरणोतल केश समूह से नीला है, शरीर से विगलित स्वेद से जो गीला हो गया है, पक्षियों के पंखों की हवा से जहाँ श्रम संगम दूर हो गया है, जिसमें मदमाते गजों के मदजल से ध्वज समूह मलिन हो गए हैं, जिसमें योद्धाओं के चढ़े हए धनुष छीन लिये गए हैं, जिसमें देवविमानों के पतन से विद्याधर राजा मुग्ध हो रहे हैं, जहाँ खड्ग के कंप से चन्द्रमा प्रकंपित है (ऐसी उस युद्धभूमि में) घत्ता–कोई विकट सुभट तलवार रूपी दंड लेकर 'दो' यह कहकर शत्रुसेना में घूमता है, धनुष हाथ में लिये हुए कोई समर्थ सुभट युद्ध की भीख मांग रहा है। (5) कोई सुभट, कटे हुए हाथों पैरों के होने पर भी हुंकार करता हुआ मांस के कौर का आस्वाद लेने वाले आकाश में जाते हुए पिशाचों को ललकारता है। कोई सुभट हाथी के दांतों के भीतर मरा हुआ ऐसा प्रतीत होता है मानो वह अपने यश रूपी पिंजड़े में सोया हआ हो। कोई सुभट अद्धन्दु से मंडित भूतों के द्वारा रुद्र के समान, एक पल के लिए भी नहीं छोड़ा गया। 2. दिसिविदिसुट्टियउग्ग" | 3. P "पल' | 4. P 'गल चलणमलिय'। 5.AP फरपत्त । 6. मगह जुल्मभिक्खइ। (5) 1 P सुभड़। 2. A खंजिउ ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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