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________________ महाकषि पुष्पवम्त विरचित महापुराण 178. 3.5 184] णं णवजसहरसिहरि ससंकर' णं अइरावइ इंदु असंकउ । णं जसु तिजगसिपिंडुरतणु धम्मालोयलीणु णं मुणिमणु । कयसरसोहउ' णाई मरालउ सुरपहाहरु णाइ मरालउ । सीयाकंखउ विरहुण्हें हर दाणालित्तपाणि णं दिग्गउ। एतहि लक्खणु रोसवियंभिउ णं रणसिरिणच्चणकरु उभिउ । लच्छीललणालोलणलोहिउ पंचवण्णगरुडद्धयसोहिउ । विजयमहीहरि कुंजरि चडियउ कालसलोणउ जणि आवडियउ। मेहहु उवरि मेहु णं थक्कउ रिउहुं णाई जमद्यउ दुक्कउ । यत्ता-बोइयमायंगई चलियतुरंगई वाहिवरहई भयंकरई ।। संणिहियविमाणई जरजपाणइं रोसुद्धाइयकिकरई ।।3।। 01 दुबई-लग्गई रामरामणाणंदई बलई रुसाविसालई' ॥छ। परमुहकुहरमुक्कहुंकारुद्दीवियबाणजालइ ॥छ।। मुक्कमुसलहलपट्टिससेल्लइ पसरियपाणिधरियधम्मेल्लई। दिखाई देते हैं, मानो नव जलधर के शिखर पर चन्द्रमा हो। माना ऐरावत महागज पर निशंक इन्द्र बैठा हो। मानो त्रैलोक्य के शिखर को शुभ्रतन कर देने वाला यश हो । मानो धर्मालोक में लीन मूनि का मन हो। जिसने सरोवर की शोभा बढ़ाई है मानो ऐसा हंस हो । मानो सूर्य की प्रभा का हरण करने वाला मेघ हो । विरह की ज्वाला से आहत सीता की आकांक्षा हो । जिसकी संड मदजल से लिप्त है, मानो ऐसा दिग्गज हो । दूसरी ओर क्रोध से विज भित लक्ष्मण था । मानो रणधी का नाचता हुआ हाथ उठा हो, जो लक्ष्मी रूपी ललना के अवलोकन का लोभी है, और पंचरंग गरुडध्वज से शोभित है, जो विजयपर्वत गज पर चढ़ा हुआ ऐसा लगता है जैसे काल के समान लोगों के बीच में आ गया हो। मानो मेघ के ऊपर मेघ स्थित हो, शत्रु ओं के ऊपर मानो यमदूत आ पहुँचा हो। धत्ता-गजे प्रेरित किये गये, घोड़े चला दिये गये, भयंकर रथ हाँक दिये गये, विमान जपान तैयार किये गये। अनुचर क्रोधित हो दौड़ पड़े। 14) राम और रावण को आनंद देने बाली, क्रोध से विशाल, मनुष्यों के मुख रूपी कुहर से मुक्त हंकार से जिसमें वाणों की ज्वाला उद्दीपित है, ऐसी दोनों सेनाएं भिड़ गईं। मूसल, हल, पट्टिस और सेल छोड़े जाने लगे। फैले हुए हाथों से चोटियाँ पकड़ी जाने लगीं । जो कटे हुए हाथ सिर, उर 2. AP मयंका । 3. AP आसंकउ । 4.A कयरिसोहउ। 5.AP वियाला 6. A खजणं उहालउ; P खज विरह उन्हाउ। 7. Aadds after this अण्णेसंत रामु ण णिगाउ K also has this line but scores it off. 8. दाणविलित्त । 9. AP "विषाणाई। (4) 1P रोसविसालई।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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