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________________ 183 78. 3. 4] महाका-पुष्रुपंत-विरइयउ महापुराण कि बच्छयल पाहणदेसह पणु आलिंगण सहुं' महु देसह का वि भणइ रणि म करि णियत्तणु सुरिज्जई पहुभुमिणियत्तणु। कि पुणु महिमंडलु वित्थिण्ण इच्छियचायभोयसंपण्णउं । देज्जसु पस्थिवचितणिवार खग्गसलिलु वइरिहि तिसगारउं। का वि भणइ पिययम पेयालइ बसतु रिउसीसकावालइ । हां दीवउ बोहेस मि जइयहं । ओवाइउ" मह पूरइ तइयतुं । का वि भणइ पडिएण वि पिंडें महिवि पिसल्ला उमराह खं हैं। कासु वि सिद्धहु आणइ थंभिवि पासि धरिज्जसु' वायइ रुभिवि । पई मुए वि हर गडिय रइच्छइ तं परिपुच्छिवि आवमि पच्छइ । घसा-सुहवत्तहु वंछहि माह ण पेच्छहि चंडहि वेयालालियहि ।। कयतुट्टिपरिग्गड परकंठग्गहु खम्गलट्ठिपुण्णालियहि ।।2।। 10 15 दुबई-तुह एवं सुवंसयं पिययम पणविणं विणीयं ।। सज्जीयं सरासणं समरि हरउ बइरिजीयं ॥छ।। जंदणवणु व णीलतालद्धउं ण रवेसे णं सई मयरद्धउ । दीसइ गीसरंतु रइयाहङ अंजणगिरिकरिवरि थिउ राहङ । उड़ गया। हे स्वामी, क्या वक्षतल बढ़ेगा और मुझे फिर से आलिंगन सुख देगा? कोई कहती है कि तुम युद्ध में पलायन नहीं करना । तुम स्वामी के भूमि के दान की याद करना । इच्छित त्याग और भोग से संपन्न विस्तीर्ण महीमडल से क्या? तुम राजा (राम) की चिंता का निवारण करने बाला तथा शत्र ओं की प्यास बढ़ाने वाला अपना खड़गजल देना । कोई कहती है-हे प्रियतम, जब मैं प्रेतालय में शत्र के सिर के कपाल (खापर) में चर्ची रूपी घी से दीप जलाऊँगी तभी मेरी याचना पूरी होगी। कोई कहती है कि पड़े हुए शरीर से भी मांसखंड से पिशाच की पूजा कर, किसी भी सिद्ध की आज्ञा से उसे स्तंभित कर, व्यंतर को वायु से रोककर अपने पास रखना। तुम्हारी मृत्यु होने पर रतिकामना से प्रबंचित मैं बाद में उससे (तुम्हारी बात) पूछने के लिए आऊँगी। पत्ता हे स्वामी, सुभगत्व चाहते हो तुम प्रचंड वेग से चलाई गई खड्गलता रूपी वेश्या के तुष्टिपरिग्रह को करनेवाले शत्र के कंठग्रह को नहीं देखते ? (3) हे प्रियतम, तुम्हारा यह सुवंश में जन्मा नमनशील विनीत सज्जित धनुष युद्ध में शत्र का जीवहरण कर ले। नील और ताल वृक्षों से युक्त नंदन बन के समान वह (राम) ऐसे लगते हैं मानो मनुष्य रूप में स्वयं कामदेव हों । संग्राम रचनेवाले राम अंजनगिरि गजराज पर बैठकर निकलते हुए ऐसे 4. P आलिंगणु सहूं 5. A सुमरिज्जइ । 6. उववायउ। 7. AP विज्जसु । 8. A आइवि । (3) 1. A पबियं ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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