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________________ 182] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण (78. 1. 10 सुगीवह गोयह रणभरधर णिहिय करंति काई किर परणर। 10 संणज्झंतु काई सो सुच्चइ हणुबंतु वि धम्म जहिं वुच्चइ । तहि" जगु विधिवि मारिवि मेल्लइ अंगउ' अंगई वइरिहि सल्लइ। दहियदोव्वसिद्धत्थयमीसित सीमंतिणिकरघित्तउ सेसउ । विरसिउ जुज्झडिडिमाडबरु बहिरिउ तेण विवरु दिसि अंबरु । मत्ति विजयपवइ सई माहउ अंजणगिरिकरिवरि थिउ राहउ। 15 बलिपुत्तें तहु बलविस्थिण्णी विज्ज पहरणावरणि" दिइण्णी। घत्ता-सइ का वि पजपइ कि पि ण कंपइ पिययम परबलु णिट्ठव हि ।। हणु करिकुंभयलई हिमकणधवलई मोत्तियाई महु पट्टवहि ||11 2 दुवई--का वि पुरंधि भणइ कि बहुवें अणुदिणु हिययजूरणं ॥ णियसिरपंकएण' पिय फेडहि गरवइपियविसुरणं ॥छ।। का वि भणइ एत्तडसं करेज्जसु पउपच्छामुहं णाह म देज्जसु । गयपडियागयपयपरिठवणे महइ कइंदु ण भडु भयगमणे। का वि भणइ ज मईथणमंडिउं तं गयदंतहं संमुहूं उड्डि । सुग्रीव की गर्दन पर युद्धभार की धुरी रख दी गई। शत्रु जन क्या कर सकते थे ? कवच पहनता हुआ वह क्या खेद करता है ? जहाँ हनुमान् को कामदेव कहा जाता है वहाँ वह विश्व को वेध कर और मारकर ही छोड़ता है । अंगद शत्रुओं के अंगों को पीड़ित करता है। दही दूध और तिलों से मिश्रित तथा सीमंतिनियों के हाथों के द्वारा शेष (निमल्यि) छोड़ा गया था। युद्ध के नगाड़ों का विस्तार बज उठा। उससे दिशा अंबर और विवर भर उठे। मतवाले विजयपर्वत गज पर स्वयं माधव (लक्ष्मण) और अंजनगिरि गजराज पर राम बैठ गए। बलिपुत्र (सुग्रीव) के द्वारा उनके लिए बल का विस्तार करने वाली और प्रहारों का आवरण करने वाली विद्या दे दी गई। पत्ता-कोई एक सती कहती है, वह बिल्कुल भी नहीं काँपती कि, हे प्रियतम, शत्र सेना को नष्ट कर दो। हाथियों के गंडस्थलों को मारो और हिमकणों के समान धवल मोती मुझे भेजो। (2) कोई इन्द्राणी कहती है. बहुत से क्या, हे प्रिय, प्रतिदिन का पीड़ित होना और राजा राम की प्रिया का विसूरना अपना सिरकमल देकर तुम नष्ट कर दो। ___कोई कहती है. इतना करना, हे स्वामी, कि अपना पैर पीछे मत देना क्योंकि गत और प्रत्यागत पद (चरण, छंद) की स्थापना से कवीन्द्र शोभित होता है। भयपूर्वक (आगे-पीछे) गमन से सुभट शोभित नहीं होता। कोई कहती है कि मैंने जोस्तन मंडित कियावह हाथी दांतों के सामने 6. A जगु तहि17. A अंगउवंगई। 8.A राहत। 9. A माह। 10. A घरणि विदिणी। (2) 1 AP सि रकप्पिएण 1 2. A रिणविसूरणं । 3. A णं गय" ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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