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________________ अत्तरिम संधि for कालाल जोइयभुयबलु विष्फुरंतु मच्छर डिउ ॥ महिकरिणिय पसरियविग्गहु कण्हु दसासहु अभिडिउ ॥ ध ुकं । 1 नियंति । आणियाई कवयई रहुरायहु दुबई – पहय गहीर भेरि सिरिरमणीमाणियदेहलक्खणा ॥ संणति हणुव सुग्गीव महापहरामलक्खणा ॥ छ ॥ माणिक्कंसुजालविण्णासई चंदकवचंदियसंका सई । उ विसंति रोमंचियकायहु । रिउसरीर बंधणई व तुट्टइ । उरि संगा दिष्णु सिरिवच्छतु । फुट्टिवि गउ सयदलु णं दुज्जणु । बाहुजुलु पुलएण विसट्टइ आवरो लहरिसपच्छ माइण सीयहि मणिणं रावणू अठहत्तरवीं संधि शत्रु-योद्धाओं के लिए कालानल, जिसने अपना बाहुबल देखा है ऐसा तथा विस्फुरित होता हुआ लक्ष्मण मत्सर से भर उठा। धरती रूपी गृहिणी के लिए आग्रह करने वाला और युद्ध का विस्तार करने वाला वह रावण से भिड़ गया। 5 (1) युद्ध की भेरि बजा दी गई। जिनके शरीर-लक्षण लक्ष्मी रूपी रमणी से मान्य हैं, ऐसे महाप्रभु राम, लक्ष्मण, हनुमान् और सुग्रीव तैयार होने लगे । माणिक्यों के किरणजाल से दिरचित, मयूरपंख की चन्द्रिका के आकार वाले कवच रघुराज के लिए दिए गए। वे रोमांचित शरीर में प्रवेश नहीं करते। रोमांच से उनका भुजयुगल विकसित होता है, और शत्रु के शरीरबंधन की तरह विघटित हो जाता है । युद्ध के शब्द से उत्पन्न हर्ष को धारण करने वाले लक्ष्मण के वक्ष पर कवच पहिना दिया गया। वह उसमें उसी प्रकार नहीं समाता जिस प्रकार सीता के मन में रावण नहीं समाता । वह सैकड़ों टुकड़ों में उसी प्रकार फट गया जैसे दल के साथ दुर्जन । आह्नि रोल 4. A फट्टिवि 15. P (1) A महिपरिणिकग्गहु 2 A महपहु । 3.
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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