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77. 12. 2]
महाकइ पुष्फल-विरहय महापुराणु
संणञ्झइ भडयणु रणसमत्थु । परसासाहारहु किर पद्ध केण वि धरियउ गुणवंतु धम्मु । परलो महइ वायरणु जेव । रिउकणकंड कड्ढि मुसलु । मीणा इव बण्णि रमति इट्टु | थिउ धरिवि गाई णहभायछंदु" । hr विहलु गहि सविक्कमेण । सोहइ णं संग रसिरिहि" हाय ।
खदसणु मज हृत्थष्पहत्य असिधेणु व केण वि दणिबद्ध रणदिखहि याविदिट्ठरम्म संघ समाणसर कोडि केव केण विचितिविणियनृबहु' कुसलु केण वि असिवाणि णायण दिट्ठ केण वि दरिसाविउ अद्धयंदु संगामखेत्तकरणुज्जमेण he fa गहिउ फणिपासु सारु
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घत्ता - मायंगतुरंगविमाणधय रहवरवाहणदूसंचारें ॥
5. A सादृश्यं; T
संगद्ध कूद्ध जयलुद्ध भड उब्भड णिग्गय णयरबारें ॥11॥
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हेला - अमरसमरभरुवही थिर किणं कखंधी' ॥ कुलधवलो धुरंधरो वइरिबाहुबंधो ॥ छ ॥
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खरदूषण, मंद, हस्त, प्रहस्त आदि युद्ध में समर्थ योद्धाजन तैयार होने लगे। किसी ने असि को धेनु की तरह मजबूती से पकड़ लिया था और उसका प्रयोग परसासाहार ( दूसरों की मांसों के आहार, परशस्याहार दूसरों के धान्य के आहार ) के लिए किया। किसी ने रणदीक्षा में स्थित होकर दृष्टिरम्य डोरी सहित धनुष ( गुण सहित धर्म ) धारण कर लिया। वह वैयाकरण के समान बाण कोटि (स्वर कोटि) को साधता है और व्याकरण के समान शत्रु ( उत्तर वर्ण) का लोप चाहता है। किसी ने अपने राजा की कुशलता का विचार कर, शत्रु रूपी hat को कूटने वाले मूसल को निकाल लिया। किसी ने तलवार के पानी में मत्स्यों की तरह रमण करते हुए अपने दोनों इष्ट नेत्रों को देखा। किसी ने अर्धेन्दु को बताया, जो ऐसा लगता था मानो आकाश भाग ने ही अर्धचन्द्र धारण कर रखा हो । युद्ध के क्षेत्र में उद्यम करने के लिए किसी सुभट ने अपने पराक्रम के साथ हल ग्रहण कर लिया। किसी ने श्रेष्ठ नागपाश ले लिया जो मानो युद्धलक्ष्मी के हार की तरह शोभित था ।
घत्ता - हाथी, घोड़ा, विमान-ध्वज और रथ श्रेष्ठ वाहनों से, जिसमें चलना मुश्किल है ऐसे नगरद्वार से क्रुद्ध संनद्ध और जय के लोभी वे उद्भट सुभट निकले ।
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जो देवयुद्ध का भार उठाने में समर्थ है, जिसका कंधा स्थिर और घर्षण चिह्नों से युक्त है, जो कुल धवल है, धुरंधर है, जो शत्रुओं के बाहुओं को बाँधने वाला है, जो रत्नों से निर्मित
णिच । 6. AP पद्दद्ध। 7. AP विहु । 8. AP पहुभाइ चंदु; K महभायचंदु but gloss भामचंदु नभोभागसादृश्यं । 9 P हिउ बिक्कमेण । 10. AP लइयउ । 11. A संगरि । (12) 1. AP fire