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________________ 178] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण [27.12.3 रयणगिरमा विराजियभीगरों विक्कमक्कमियमविलयगिरिसायरो। पवणवइसवणजमवरुणवलभंजणो असुरसुरखयरफणितरुणिमणरंजणो। गरलतमपडलकालिदिजलसामलो सुरहिमयणाहिउच्छलियतणुपरिमलो। कोवगुरुजलणजालोलिजालिय दिसो सरल रत्तच्छिविच्छोहणिज्जियविसो। वीरपरिहवपरोः रइयरणपरियरो __ मुक्कगुणरावधणुदंडमंडियकरो। णिहिलजगगिलणकालो व दुक्को सयं छत्तछण्णो महंतो जणंतो भयं। कढिणभुयफलिहसयलिदकंपावणो कसणघणकारिवरारूढओ रावणो। असमपरविसमसाहसणिही णिग्गओ विमलकमलाहिसेयस्स णं दिग्गओ। हरिकरिकमाया हल्लिया मेइणी रणहिरलंपड़ी णच्चिया डाइणी। कुलिसकुडिलंकुरारावलीराइयं धगधगतं पुरो चक्कमुद्धाइयं। निशाचर-ध्वजों से भयंकर है, जिसने अपने विक्रम से महीवलय, गिरि और समुद्र को आक्रांत किया है जो पवन, वैश्रवण, यम और वरुण के वल का नाश करने वाला है; जो असुर, सुर, विद्याघर, नाग और तरुणियों के मन का रंजन करने वाला है, जो विष, तमपटल और यमुना के जल के समान श्याम है, कस्तुरीमृग के समान जिसके शरीर से परिमल उछलता है, जिसने क्रोध रूपी ज्वालावलि से दिशाओं को जला दिया है, अपनी सरल और लाल आँखों की कांति से जिसने वृषभ को विजित कर लिया है, जो वीरों के पराभव में तत्पर है, जिसने युद्ध का परिकर बना रखा है, छोड़ी गई प्रत्यंचा के शब्द वाले धनुषदंड से जिसका कर शोभित है, ऐसा महान् छत्रों से आच्छादित, भय पैदा करता हुआ, अपने वाहुफलकों के द्वारा शैलेन्द्र को कैंपाने वाला, काले मेघ के समान महागज पर बैठा हुआ रावण समस्त विश्व को निगलने वाले काल के समान स्वयं वहाँ आ पहुँचा । असम और शत्रु के लिए विषम साहस की निधिवाला वह इस प्रकार निकला मानो विमल कमला (लक्ष्मी) के अभिषेक के लिए दिग्गज निकला हो । नारायण के हाथी से आहत धरती हिल उठी । युद्ध के रक्त को लालची डायन नाच उठी। उसने कुटिल वनांकुरों के समान आराओं की आवली से शोभित तथा धक-धक करता हुआ चक्र सामने उठा लिया। 2. Pधिकमास्कमिय। 3. AP धीर । 4.A गलिण।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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