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________________ 176] महाकवि पुष्पदन्त दिवस महापुराणा [77. 10.6 ललंततवेढतथिप्पतरसं सदप्पं खुरप्पोहछिज्जतछत्त। भिडंत पडतं सारत्तणेतं समुन्भूयपासेयधाराहि सित्तं । गइंदुग्गदंतग्गभिज्जंतगत्तं दिसासु विसंतं वसातुप्पलितं । गयाघट्टणुट्टग्मिजालापलित्तं थिरत्तेण साहारियासारमितं । समप्पंतइच्छ सरुभिण्णवच्छे महाघायमुच्छाविणिम्मीलियच्छं। 10 विरुज्झतजुज्झतपाइक्कचंड सकोदंडकंड कय खंडखंड। वराहिंदमाणेहिं बाणेहिं रुद्ध रणे रामएवस्य सेण्णं णिरुद्ध' घत्ता-तहुपरबलु किमिणु ब ओसरिखं मग्गणवंदु धुलतउ पेक्खइ ।। आवरणु करइ तणु संबरइ णवउ कलत्तु व अप्पउं रक्खइ ।।101 11 हेला–ता विज्जाहराहिवो पउरकोवपुण्णो' ।। संणद्धो महाभडो अवि य कुंभयण्णो ॥छ।। पहु कुंभु णिकुंभु अमेयसत्ति इंदइ इंदाउहु इंदकित्ति। इंदीवरलोयणु इंदवम्मु इयदेहु सूरु दुम्मूहु अगम्म। महवंतु महामह बहमुहक्न बलकेड महाबलु धूमचक्खु । है, जो दर्प सहित है, जिसमें खुरपों के समूह से छत्र उखाड़ दिए गए हैं, जो लड़ती और पड़ती जिसके नेत्र रक्त से लाल हैं, जो निकली हई प्रस्वेदधारा से सिंचित है, जिसमें शरीर गजेन्द्रों के निकले हुए दाँतों के अग्रभाग से भेद दिए गए हैं। दिशाओं में प्रवेश करती हुई, जो चर्षी रूपी वी से लिप्त है, जो गदाओं के संघर्ष से उत्पन्न आग से प्रदीप्त है, जिसने अपनी स्थिरता से धेष्ठ मित्रों को धैर्य बँधाया है, जो समर्पण की इच्छा कर रही है, जिसके वक्ष तीरों से घायल हैं, महान् आघातों की मूर्छा से जिनकी आँखें बंद हो गई हैं। जो विरद और संघर्षरत पैदल सैनिकों से प्रचंड है, ऐसी सेना को धनुष और वाण सहित उसी प्रकार छिन्न-भिन्न कर दिया, जिस प्रकार चन्द्रमा अंधकार समूह को नष्ट कर देता है। श्रेष्ठ नागों के आकार के तीरों से उसने राम देव की सेना को अवरुद्ध कर दिया। घत्ता-उसका शत्रुसैन्य कृपण की तरह, मम्गणविंद (वाणों का समूह, याचकों का समूह) को व्याप्त देखकर हट गया। वह नववधू की तरह आवरण करती है और शरीर को ढकती है। अपनी रक्षा करती है। तब प्रचुर कोप से पूर्ण विद्याधर राजा रावण तैयार हुआ और महासुभट कुभकर्ण भी। प्रभु कुंभ और अप्रमेय शक्ति निकुभ, इन्द्रजीत, इन्द्रायुध, इन्द्रकीर्ति, इंदीवर लोचन, इन्द्रवर्मा, इतदेह, सूर दुर्मुख, अगम्य महवंत, महामधु, बुधमुख, बलकेतु, महाबल, धूम्रचक्षु, 6. A खुरुप्पेहि; P खुरुप्पोह। 7. AP °घट्टशुत्थगि । 8. A राहिंडमाणेहिं । 9. A विरुवं । 10. AP किविणु। (11) I. A पवर' । 2. P इंदधम्मु । 3. P अमम्मु । 4. P महवंतु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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