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________________ 160] [76.6. 15 महाकषि पुष्पदन्त विरचित महापुराण घसा-हरिकररुहवणि आलग्गसुरहिणवचंदणु ॥ वणु महु आवडइ णं लच्छिहि केरउ जोवणु ।।6।। 15 14 मलयमंजरी-रूढबालकंदं देवदारुमंदं सूरकिरणवारं ।। जणियमयण सारंग॥छ।। इंदसरासणेण घणखलमिव णीलतमाल णिद्धयं । वण मंजणसुएण लंगूले चाहि वि दिसहि रुद्धयं ।। 1।। सुरकरिसोंडचंडभुयदंडवलेण' चलेण पैल्लियं । मोडियमहिरुहोहसंघट्टणचुयचंदण रसोल्लियं ।।2। 'करमरकडहकुडयकडयडरवउड्डावियविहंगयं । भग्गण वल्लफुल्लपल्लवदलगयगु मुगमियभिगयं ॥३॥ 'णिविडवडालिवंदणुम्मूलणविहडावियरसायलं । णिग्गयसविसफरुसफुक्कारभयंकरसमणिफणिउल ।।4।। चूरियचारचूयचयचिचिणिसमिलवलौलवंगयं"। 'पायाह्यपलोट्टचंपयचयदलवष्टियकुरंगयं ॥5॥ दलिगलयाणितामणि सिगावपरर हसुतं ! पत्ता-(वह कहता है) मुझे यह नंदन बन लक्ष्मी के यौवन के समान दिखाई देता है कि जो विष्णु के नाखूनों से व्रणित है (जो हाथी के नखों से व्रणित है) और जिसमें सुरभित चंदन (चंदनवृक्ष) लगा हुआ है। (7) जो छोटी-छोटी जड़ों से अवरुद्ध था, देवदारु वृक्षों से पूर्ण, सूर्य की किरणों का निवारक, कुसुमों से आवासित, दिव्य मिथुनों का निवास और काम के श्रेष्ठतत्त्वों से अधिष्ठित था; नील तमाल वृक्षों से कांतियुक्त वह ऐसा लगता था मानो इन्द्रधनुष से युक्त मेघ समूह हो । उस वन को अंजनी के पुत्र ने अपनी पूंछ से चारों ओर से अवरुद्ध कर लिया। ऐरावत हाथी की संड के समान भजदंड के चंचल बल से उसे प्रेरित किया। मोड़े गए वृक्षों के समूह के संघर्ष से उत्पन्न च्युत चंदन रस से जो आई हो उठा; जहाँ करमर कटभ और कुटज वृक्षों पर होने बाले कटकट शब्द से पक्षी उड़ा दिए गए हैं, छिन्न नव पुष्प और लताओं के दलों पर भ्रमर गुनगुना रहे हैं, जिसमें सघन वट वृक्षावलि एवं रक्त चंदन वृक्षों के उन्मूलन से पृथ्वीतल विधटित हो गया है, जिसमें निकलती हुई अपने विष की कठोर फूत्कार से मणि सहित नागकुल भयंकर हो उठा है, जिसमें अचार, आम्र, चव, चिचिणी और शाल्मलिफली और लवंग लताएँ चूरित हो चुकी हैं, पैरों के प्रहार से धरती पर गिरे हुए चम्पक वृक्षों के समूह से हरिण समूह पिचल गया है, दलित लतानिवासों में जहाँ सुरों और विद्याधरों का रति सुख नष्ट (1) 1.AP छहसुसभुय"। 2. A करमरकुत्यकडय; P करमरकुहरकुस्यकलय' । 3. AP कायस्सरहा। 4. Aणिवडियडालि'; Pणिवस्वगलि"। 5. AP "रसालयं। 6. AP "पपिपिपिणि । 7.AP'चंपसरयदल। 8. P बढिय।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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