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________________ 76.8.2] महाफास्पष्फपंस-विरइयउ महापुराणु सुरुढिणकरतलप्पमुसुमूरियकोलागिरिगुहामुहं" ।।6।। पविमल मणिसिलायसूत्थल्लणदिग्गयजक्खकतयं । सरवाबोणिबद्धविद्ध सिबकीलासलिलजंतय ।।7।। यविधिण्णमाहिसाहाचुयबहमहुबिंदुतंबयं"। पडियकवित्थभकिणरकरवीणालगतुंबयं ॥४॥ दूरुद्धरियविडविमूलुज्झियविवरणिलीणसावयं । पंडिरवतसियरसियविधियाणणवाणरविरइयावय।। ।।9।। खंडियतुगमड्ड सिहरुड्डियहसविमुक्कसदयं । णिवडियणालिएरसालामलफलमालाविमयं ।। : 00 घल्लियसुक्करुक्खसंघट्टसमुग्गयजलणजालयं । दढपियंगुपिगउच्छलियफुलिंगपलित्ततमालतालयं ।।।1।। मुक्कतिसूलसेल्लसरधोरणि सवलभिडिमालयं । धाइयभिडिभंगभीसावणभिडिउज्जाणबालयं ।।।2।। पत्ता-विज्जाणिम्मियहिं अइभीमहि मायारहि ।। पावणि वेदियउ रावणणंदणवणरक्खहि ।।7।। मलयमंजरी-संगरम्मि कुद्धा पमयएहि रुद्धा दूरवीरमाणा॥ मारिया अणेया जित्तहरिणवेया रक्खसा पलाणा ॥छ।। ---.. - --.. होचका है, जहाँ अत्यन्त कठोर प्रहारों से क्रीड़ागिरि के गुहामुखों को चूर-चूर कर दिया गया है, जो विशाल मणिमय चट्टानों पर उछलसे दिग्गजों और यक्षों से सुन्दर है, जिसमें सरोवर और वापियों में लगे हुए क्रीड़ा सलिल यंत्र ध्वस्त हो चुके हैं, जो आहत बड़े-बड़े वक्षों की शाखाओं से च्युत प्रचुर मधु बिंदुओं से तान है, जहाँ गिरते हुए कपित्थों (कैथ) से भग्न किन्नरों के कर में वीणा की तुम्बी लगी हुई है, जहाँ दूर तक उखड़े हुए वृक्षों की जड़ों से नीचे गिरे हुए विवरों में पक्षी-शायक लीन हैं, जहाँ प्रतिशब्द से त्रस्त और चिल्लाते हए विकसित-मुख वानर चक्कर काट रहे हैं, जो खंडित ऊँची और मदित शिखर से उडते लए इंसों के द्वारा मुक्त शब्दों से युक्त है, जो गिरे हुए नारियलों की शाखाफल-मालाओं से विदित है, जहां दग्ध प्रियंगु लता के उछलते हुए पीले स्फुलिंगों से तमाल और ताल वृक्ष प्रदीप्त हैं। जो छोडे गए त्रिशल सेल, तीरपंक्ति, सवल और गोफनी से युक्त है, जिसमें दौड़कर भृकुटि भंग से भयावह उद्यानपालों से भिड़त हो गई है। पत्ता--विद्यानिमित अत्यन्त भयंकर मायावी राक्षसों और रावण के नन्दन वन के रक्षकों द्वारा हनुमान् घेर लिया गया। (8) युद्ध में क्रुद्ध, वानरों द्वारा अवरुद्ध, वीरता का दर्प करनेवाले, हरिण का वेग जीतने 9. A खरतलप्प | 10. P ornits बहु । 11. AP रसियतसिय । 12. A सिहरुट्टिय | 13.AP omit तमाल । 14. A °भिडमालयं । 15 AP अभीयहि । (8) I.A एम एहि रुद्धा।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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