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________________ 76. 6. 14] महाका-पुष्फयंत-विरायड महापुराणु [159 [159 मलयमंजरी-पुरिससोरखगाही अहियवेहवाही लिव्वदुक्खल्लि ॥ कुणइ कह वि आयं सुण्णरण्णजायं ओसहं सुहेल्लि॥छ।। रावणरज्जमाणु वित्थिण्ण रामें तासु तिदायइ दिपणउ । गय क इवय वासर तहिं जइयहुं हणुएं बुत्तु हलाउहु सइयहुं । दे आएसु" देव णउ थक्कमि एवहिं लंकाहि संमुह दुनि भीमें वाणररूवें वड्ढाम डहमि घरई भडभंडणु' कढमि । भंजामि बणाईलवलिदललंबई फलणवियंगई पल्लवतंबई। ता दसरहसुएण परबलहर अरिकरिदतघद्रदीहरकर। कामरूबधर णावइ सुरवर तासु सहाय दिपण विज्जाहर। वाणरविज्जइ वाणर होइवि सयल वि गय लकासारे जोइदि। 10 गयण बिलग्गदेह गिरिपहरण बुक्करंत बग्गिय मग्गियरण। पुंछवलयवलइयतरुवरसिल चरणचारचालियधरणीयल । छिब्बरणास दीहदंताणण पिंगलणयण छोहमीसाबण। धाइय पत्त दसासहु पट्टणु मारुइणा जोइउ णंदणवण । तीव्र दुखरूपी लता अहितकर देहव्याधि है, पुरुष के सुख को नष्ट करनेवाली, इसकी शून्य वन में सुखद यह औषधि किसी प्रकार करो। रावण राज्य का मान विस्तृत है । राम ने तीन बार उसे वचन दिया है। जब (वहाँ रहते हुए) कई दिन बीत गए तब हनुमान् ने राम से कहा-हे देव, आदेश दोजिए, मैं नहीं ठहर सकता। इस समय मैं लंका के सम्मुख जाऊंगा। भयंकर वानर रूप में अपने को बढ़ाऊंगा, घरों को जलाऊँगा । योद्धा रूपी वर्तनों को निकालंगा। लवली लता से अवलंबित फलों से सकी हुई शाखाओं वाले पल्लवों से लाल-लाल वनों को नष्ट करूँगा। उस अवसर पर राग ने शत्रुबल का अपहरण करने वाले, शत्रु-गजों के दाँतों से अपने लम्बे दाँत घिसने वाले, यथेच्छ रूप धारण करने वाले, जैसे देव हों ऐसे विद्याधर उसकी सहायता के लिए दिए। सभी विद्याधर वानर-विद्या से बानर होकर, लंका को लक्ष्य बनाकर गए। उनके शरीर आकाश से लगे हुए थे। गिरि प्रहरण करते, बुक्कार करते हुए, क्रुद्ध और युद्ध करते हुए, अपनी पूंछों से तरुवर और चट्टानों को मोड़ते हुए, पैरों के संचार से धरती को प्रकंपित करते हुए, चिपटो नाक और लम्बे दाँतों वाले, पीले नेत्रों वाले और क्रोध से एकदम भयंकर वे दौड़े और रावण-नगर पहुँच गए। हनुमान् ने नंदनवन को देखा। (6) 1.A देववाही। 2.A दुखमल्ली; P दुक्खवेल्लि। 3. AP कहि वि। 4. A सुहेल्ली। 9. AP तास वि वाय। 6.Pदेहाए। 7.P भडण । 8.A जिल्लदललंबई: P लवत्रिदलवंतई। 9. P करिकत। 10 AP छिविर ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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