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________________ 156] महाकवि पुष्पदन्स विरचित महापुराण [76. 2. 10 एंतु ण एंतु" होंतु बलदप्पिय संगरि तुह कहवालझडप्पिय। 10 णिहिल जति तिमिरु व दिवसयरहु पई होंतें कहि दिहि रिउणियरह। एक्कु जि दोसुर णवर परमेसर जं पई वाहिय परणारिहि कर। घत्ता-पूरइ तित्ति ण वि रइ यसरइ वंछइ संगह। परवहुरत्तमणु परि वडइ दिणेहि णियंगहु ।। 211 मलयमंजरी—मयणबणियचित्तो परप्रधिरत्तो मरइ साणुअंधो॥ पडद्द गरयरंधे सत्तमे तमंधे बद्धकम्मबंधो ॥छ।। विमहरसुरणरविरइयसे वह धीरहु वसुसंखाबलएवहु । हरिवाहिणिविज्जारवाहहु भीमगयाहलमुमलसणाहहु 1 बज्जावत्तसरासणहत्यह दिज्ज परिणि देव काकुत्यहु। चक्कपसूइ ण चंगउं दावइ लक्खणु वासुएउ महं भावइ । अण्णहु किविकधेसु ण रप्पइ अण्णहु कि रणि वालि समप्पइ। अण्णहु मारुइकिधरु आवइ किं पण्णत्तिविज्ज परिधावई। अण्णहु पंचयण्णु कि वज्जइ अपणु एव कि लच्छिइ छम्जइ। अण्णे धरणिधेणु किह बज्झइ गारूडविज्ज ग अण्णहु सिज्झइ। 10 बल खंडित हो जाएगा। युद्ध में तुम्हारी तलवार से वे आहत होंगे। वे तुम से उसी प्रकार चले जाएँगे जिस प्रकार सूर्य से अन्धकार हट जाता है, आपके होते हुए शत्रसमूह में धीरज कहाँ ? हे परेमश्यर, परन्तु केवल एक दोष है कि तुमने परस्त्री का हाथ जो पकड़ा। घत्ता-तृप्ति पूरी नहीं होती और रति प्रसारित होती है, संग्रह की वांछा करती है। इस प्रकार परस्त्री में अनुरक्त मन अपने ही शरीर के अंगों पर पड़ता है। काम में आसक्त चित्त और परस्त्री में रक्त, पुत्र-कलत्रादि से सहित जिसने कर्म बांधा है ऐसा मनुष्य तमांध नामक सातवें नरक में जाता है। विषधर-सुर और मनुष्यों के द्वारा जिनकी सेवा की जाती है। ऐसे धीर आठवें बलदेव लक्ष्मण-सेना और विद्याधर, सेना का संचालन करने वाले भयंकर गदा, हल और मसलों से सनाथ, जिनके हाथ में वज्रावर्त वनुष है ऐसे राम को, हे देव, उनकी गृहिणी दे दीजिए। चक्र की प्रभूति (उत्पत्ति) मुझे अच्छी नहीं लगती । लक्ष्मण और वासुदेव मुझे अच्छे लगते हैं। किष्किधा का राजा किसी दूसरे से अनुराग नहीं करता। क्या युद्ध में बालि किसी दूसरे के लिए समर्पण करता? हनुमान् क्या किसी दूसरे के घर आता है और क्या प्रज्ञप्ति विद्या दौड़ती है ? किसी दूसरे से पांचजन्य बजता है ? लक्ष्मी से क्या कोई दूसरा शोभित होता है ? किसी दूसरे के द्वारा धरती रूपो धेनु क्या बांधी जाती है ? गारुड़ विद्या किसी दूसरे के लिए सिद्ध नहीं हो सकती। परबधू इह लोक और परलोक में पराभव करने वाली होती 6. यंतु | 7.AP णबर दोसू । (3) I. A णरघरंधे । 2. A °विज्जाहर। 3. A विजह । 4. AP देव परिणि । 5. A अण्णु वि। 6. A परिहावद।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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