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________________ 76. 4. 12) महाक इ- पुप्फयंत विरश्य महापुराणु बहु इह पर परिवारी केवलिभासिउ देव ण चुक्कइ अणु वि जाणइ धूय' तुहारी । फेरि बलहुँ गाणि घत्ता - जंपइ दवयणु भो' जाहि जाहि जइ भीयउ ॥ पूर आणि भडु कुंभयण्णु महू बीउ || || 4 मलय मंजरी --रे विहीसणुत्तं किं तए अजुत्तं मुयसु महिणिवासं ॥ हीदी सो चरणघुलियकेसो जाहि रामपासं ॥ छ ॥ पुणु परिवाडि ण जाणमि एण मिसेण देत पहविमलई तणुसीय दंत मलु फिट्टइ पण तुट्ठा मु छेउ णिहालि बंधुसणे हद्दु मंतिमईहि मंतु अवलोइज एवं रहंगु खगिदणिसुंभउं हा रावण जियंतु ण पेक्खमि ains faara असहायहं इय चितंतुणिसिहिणीसरियड । जा' ण समिच्छइ सा गउ माणमि । खुमि रामलक्खसि रकमलाई । far सीयs महु किं ण पयट्टइ' । कसणाणणु गं गब्भिणिउररुहु । णिमाज बंधव गउ यिगेहहु । भायरेण मणु णिच्छइ ढोइन । जाय पाइ कुलीरहु डिभउं परहु जति णियकुलसिरि रक्खमि । सप्पएसु" भल्ला रङ रायहं । दिट्ठ समुह तेण जलभरिय | [157 5 10 है। और फिर जानकी तुम्हारी कन्या है। हे देव, केवलज्ञानी का कहा हुआ कभी चूकता नहीं । जब तक तुम्हारी नियति नहीं पहुँचती, तब तक आप बलभद्र के लिए सीता देवी सौंप दें । धत्ता---तब रावण कहता है---अरे तुम डर गए हो तो जाओ जाओ, युद्ध में मेरा दूसरा योद्धा कुम्भकर्ण काम में आएगा ! (4) रे विभीषण तूने अनुचित बात क्यों कहीं ? तू इस धरती का निवास छोड़ दे। हीन दीन वेश में पैरों तक अपने केश फैलाए हुए तू राम के पास जा । मैं क्या फिर परिपाटी नहीं जानता ? जो स्त्री मुझे नहीं चाहती, उसे मैं नहीं मानता । इस बहाने दांतों की प्रभा से विमल राम और लक्ष्मण के सिर-कमलों को काट लूंगा। तृण की सीक से दांतों का मल नष्ट हो जाएगा। बिना सीना के मेरा क्या नहीं होगा। तब प्रणाम करता हुआ विभीषण अपना मुख नीचा करके रह गया। गर्भिणी के उरोजों की तरह उसका मुख काला हो गया। उसने भाई के प्रेम का अन्त पा लिया। भाई निकलकर अपने घर चला गया। मंत्रियों की बुद्धि से उसने मंत्र का अवलोकन किया कि भाई ने निश्चित रूप से अपना मन दे दिया है। हा रावण, मैं तुम्हें जीवित नहीं देखूंगा। फिर भी दूसरे के यहाँ जाती हुई अपनी कुल लक्ष्मी की रक्षा करूंगा। विपक्ष के बलवान होने पर असहाय राजाओं का उसमें प्रवेश कर लेना अच्छा है । यह विचार करते हुए वह रात्रि में निकला, और उसने जल से भरा हुआ समुद्र देखा । 7. P धी । 8 A हो जाहि । 1 ( 4 ) 1.A मह णिवासं । 2 AP पुणु किं 1 3 A परिवाडि 4 A जो। 5. A तणे सीए । 6. AP दसहं | 7 A इट्ठई। 8 A बंधमणेहहु 9 A एहू 10 A जोयउ । 11. P सप्पवेसु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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