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________________ 15211 [75. 11. 14 महाकवि पुष्पबन्त विरचित महापुराण घत्ता---घणगयवरि तडिकच्छंकियइ चडिउ धरेप्पिणु इंदधणु ।। वरिसंतु सरहिं पाउसणिवइ णं गिमें सहुं करइ रणु ॥1॥ 15 12 कायउलइं तरुघरि संठियाई हंसई सरमुयणुक्कंठियाई। सरवर सेजाया तुच्छणलिण दिसभाय वि णवकसणभमलिण । णचंति मोर मज्जति कंक पंथिय वहति मणि गमणसंक । चल चायय तहादसति उमरीश पल- विति पवसियपियाउ दुहसल्लियाउ महमयिउ जाइउ फुल्लियाउ। दिसपसरियकेय इकुसुमरेणु चिक्खिल्लें' तोसिय किद्धि करेणु । परिसते देवें भरिउ देसु जल थलु संजायउं णिव्विसेसु । एक्कहिं मिलियाई दिसाणणाई पप्फुल्लकयंबई काणणाई। अवलोइवि रामु विसायगत्यु थिउ णियकओलि संणिहियहत्थु । घत्ता–घणु गज्जउ विज्जु वि बिप्फुरउ पडउ सिहंडि वि मूढमइ ।। विणु सीयइ पावसु" राहवह भणु कि ह्यिवइ करद्द रह ।।12।। 13 पुणु सरउ पवण्णु सचंदहासु बाणासणकयरिद्धीपयासु। विमलासउ कुवलयभेयकारि बहुबंधुजीवदोसावहारि'। पत्ता-बिजली रूपी कच्छा (वरत्र, रस्सी) से अंकित मेघरूपी गज पर आरूढ इन्द्रधनुष लेकर पावस रूपी राजा मानों तीरों से बरसता हुआ ग्रीष्म के साथ युद्ध कर रहा है। (12) काककूल वृक्ष रूपी धरों में बैठ गए। हंस सरोवरों को छोड़ने के लिए उत्सुक हो उठे। सरो- . वर कमलों से हीन हो गए। दिशाएँ भी काले बादलों से मलिन हो गईं। मयूर नाचते हैं, बगुले डबकियाँ लगाते हैं। प्यास से व्याकुल चंचल चातक चिल्लाने लगे और मेघों का पानी पीने लगे। प्रेषितपतिकाएँ दुःख से पीड़ित हो उठौं । जुही की लताएँ महकने लगीं। केतकी कुसुम पराग दिशाओं में प्रसरित होने लगा। गज और सुअर कीचड़ से प्रसन्न हो उठे। मेघराज के बरसने पर देश (जल से भर गया। जल और स्थल निर्विशेष हो गए। दिशाओं के मुख एकाकार हो गए। काननों में कदम्ब के पुष्प खिल गए । विषादग्रस्त राम उसे देखकर अपने गाल पर हाथ रखकर बैठ गए। पत्ता-मेघ गरजी, बिजली चमकी और मुहमति मोर नाच उठा । बताओ वह पावस राम के हृदय में सीता के बिना कैसे प्रेम उत्पन्न कर सकता है ? (13) फिर चन्द्रमा की कांति के साथ शरद् ऋतु रावण के समान आ गई जो मानो रावण के समान, वाणासन (वृक्ष विशेष, धनुष) की ऋद्धि को प्रकाशित करनेवाली, विमल आशयवाली, कुवलय (कमल, पृथ्वीमंडल का) भेदन करनेवाली, अनेक बंधु जीवों के दोषों का अपहरण करने (12) 1. A सरसुअणु । 2. A विसभीय वि णं कसण"। 3. AP दिसि परिउ । 4. Aपिखल्ले । 5.AP कलंबई । 6. P पाउसु । (13) 1 PA "जीवबंधु।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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