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________________ [151 75 11.13] महाक-पृष्फर्यत-विरहयउ महापुरागु पत्ता-हरिणीले कुदें परियरिउ खगसारंगविराइयउ ।। किक्किधसिहरि णियवंसधरु रामें रामु व जोइयउ ॥1011 11 पइसंतहि हलहरकेसवेहि अवरेहि मि बहुभूगोयरेहि । जहि णिवसइ सो सुग्गीउ ख्यरु अवलोइउ तं किक्किधणयरु । तोरणदुवारि सुपसत्थियाउ दहिअषयमंगलहत्थियाउ। णरचित्तसारधणसामिणीउ बोल्लंति परोप्परु कामिणी । हलि धवलउ कालउ कवणु रामु बिहिं रूवहि किं' थिउ देउ कामु। 5 कि एहु जि एहु ण एहु एहु दीसह वण्णंतरभिषणदेहु । बररूबालुद्धई जुजियाई अच्चंतपलोयणरंजियाई। जणवयणयणई कसणई सियाई णं हरिबलतणुछायंकियाई। घर आया कहि लभंति इट्ट णियमंदिर पडिवत्तीइ दिद। सिरपणमणण्हाणविलेवणेहि देवंगहि णिसणभूसणेहिं । 10 अविचितियसाहसकित्सिनण्ट भावें ममाणिय रामकण्ह । सुग्गी- बेगिण वि सामिसाल खलबलगलथल्लणबाहुडाल"। तहि दियह जंति किर कइ वि जाव संपत्तउ वासारत्तु तांय । पत्ता-किष्किधा पहाड़ को राम ने (अपने) समान देखा जो हरि नील (लक्ष्मण और नील, इन्द्रनील मणि) और कुंद (कुंद, पुष्प विशेष) से घिरे हुए खग, सारंग (विद्याधर और धनुष, पक्षी और हरिण) से शोभित तथा नियवंश (कुटुम्ब, वासों) को धारण करने वाला था। प्रवेश करते हुए बलभद्र और नारायण तथा दूसरे-दूसरे अनेक मनुष्यों ने, उस किष्किधा नगर को देखा जहाँ विद्याधर सुग्रीव निवास करता था। तोरण बाले दरवाजों पर, अत्यन्त प्रशस्त, जिनके हाथों में दही अक्षत और मंगल द्रव्य हैं, ऐसी मनुष्यों के चित्त रूपी श्रेष्ठ धन की स्वामिनी स्त्रियां आपस में बातचीत करने लगीं। हे सखी, राम कौन हैं, गोरे या काले ? क्या कामदेव ही दो रूपों में स्थित हो गया है ? क्या यही है ? यह नहीं यह हैं। अलग-अलग वर्ण से भिन्न शरीर दिखाई देते हैं। सुन्दर रूप के लोभी और भखे, अत्यन्त देखने से रंजित, लोगों के मुख काले और सफेद हो गए। सच है कि राम और लक्ष्मण के शरीर की कांति से साथ अंकित हो घर आये हुए इष्ट जन कहाँ मिलते हैं ? इसलिए उन्होंने गौरव के साथ उन्हें देखा । सिरों के प्रणामों, स्नानों और विलेपनों, दिव्य वसनों और आभूषणों से सुग्रीव द्वारा अचिंतनीय साहस और कीर्ति के प्यासे, दुष्ट सेना की गर्दनिया देने वाले हाथों रूपी डालों वाले दोनों स्वामीश्रेष्ठों का सम्मान किया गया। जब तक वहाँ उनके कुछ दिन बीतते हैं, तब तक वर्षा ऋतु आ गई। (11) 1. सबहलाहरेहिं । 2. A प्रणमाणिणीउ । 3.A हरि। 4. A थिउ किउ देर । 5. A पहु। 6. मल्लत्य।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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