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________________ [153 75. 13. 14] महाका-पृष्फयंत-विरइया महापुराण परिसंतावियपोमंतरंगु णं रावणु दावियदुक्खसंगु । णउ रुच्चइ रामहु वट्टमाणु पियविरहिउ किच्छे धरइ प्राणु । ता सुग्गीवें वुत्तउ पहाणु केसव णिज्झायहि मंतझाणु । मेलावहि सीयारामकामु ता जाइवि सीयारामधामु। वसुसयसंखा वर" दुणिरिक्त वउदिसहि णिजिवि देहरक्ख । दरवीर कोनकालाजहत्य उच्चारिवि थुइमंगल पसत्य । कयरयणकिरणपरिहवविसुज्ज" सिंवघोसमहामुणिपडिमपुज्ज । पडिविज्जावारणि पज्जणिज्ज कण्हें साहिय पण्णत्ति विज्ज । संमेयमहीहरि सिद्धखेत्ति सुग्गीवें हणुवेण वि पवित्ति । गुरुयणविहीइ आराह्यिाउ णाणाविहविज्जउ साहियाउ । पत्ता-अण्णेहि अण्णहि गिरिसिहरि" भरहि भरेण पसिद्धियत ।। पणवंतिउ आयउ देवयउ पुप्फयंतरुइरिद्धियउ ।।13।। 10 इय महापुराणे तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकारे महाभव्यभरहाणुमण्णिए महाकइपुप्फयंतविरइए महाकव्वे वालिणिहणण' रामलक्खणविज्जासाहणं णाम पंचहत्तरिमो परिच्छेओ समत्तो ।।75॥ वाली, पद्म (कमल, राम) के अंतरंग को संतापदायक और दुःख का साथ दिखाने वाली थी। वर्तमान शरदऋतु राम के लिए अच्छी नहीं लगती। प्रिया से विरहित वह बड़ी कठिनाई से प्राण धारण करते हैं। तब सुग्रीव ने प्रधान (राम) से कहा-हे राम, मंत्र का ध्यान करिए 1 वह सीता और राम की कामना को मिलवा देगा। तब पृथ्वी में आराम स्थान पर जाकर, आठ सौ दुर्दर्शनीय देह बाले, भाले और तलवार लिये हुए श्रेष्ठ बीर रक्षकों को चारों दिशाओं में नियुक्त कर, प्रशस्त स्तुति मंगल का उच्चारण कर, जिसने रत्नकिरणों से सूर्य का पराभव किया है ऐसे शिवघोष महामुनि की प्रतिमा की पूजा की तथा प्रतिविद्या का निवारण करने वाली पूजनीय प्रज्ञप्ति विद्या को लक्ष्मण ने सिद्ध कर लिया। पवित्र सिद्धक्षेत्र सम्मेदशिखर पर सुग्रीव और हनुमान ने भी गुरूजनों की विधि से आराधित नाना प्रकार की विद्याएँ सिद्ध कीं। पत्ता भरतक्षेत्र के अद्वितीय गिरिशिखर पर दूसरों ने स्मरण (आराधना) से विद्याएं सिद्ध की। सूर्य और चन्द्रमा की कांति से समृद्ध देवियाँ प्रणाम करती हुई आईं। सठ महापुरुषों के गुणालंकारों से मुक्त इस महापुराण में, महाकवि पुष्पदंत द्वारा विचारित तथा महापम्प भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का वालि-निधन एवं राम-लक्ष्मण-विधा-साधन नाम का पचहत्तरवां परिच्छेद समाप्त हुआ। 2.AP पाणु । 3. AP घर । 4. AP परिहवियसुज्ज । 5. AP विज्जा । 6.A गिरिवरहे। 7.Pालिणिहणं ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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