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________________ 75.9.5] महाका-पुस्फयंत-विरपर महापुराण [149 अण्णाई गहियाई अण्णाई मक्काइं चिधाई रुह द्धयंदेहि लुक्काई। धावंत वेवंत सरभिण्ण हिलिहिलिय अंतावलीखलिय महिनीढि रुलघुलिय' । गयघायकडयडिय रह पडियजोत्तार भड भीम थिय बे वि संगामकत्तार। 10 अभिट्ट ते बालि लक्षण महावीर थिरहत्थ सुसमत्थ सुरगिरिवराधीर' । तडिदंडसरलेहि तरले हिं खग्गेहिं संचरणपइसरणणीसरणमग्गेहि। खणखणखणतेहिं उग्गयफुलिंगेहि जिमिजिगियधारापरज्जियपयंगेहिं । पत्ता-रणसरवरि यमुहफेणजलि सोणियधाराणालचलु॥ असिचंचु लक्षणलवखणिण तोडिउ वालिहिं सिरकमलु ॥४।। 15 फोडिवि रणि वइरिहि सिरफरोडि किलिकिलिपुरेण' सहं नामकोडि। दिण्णी सुग्गीवखगाहिवासु एवड्ड फुरणु भणु भुवणि कासु। मेल्लेप्पिणु लक्खणु लच्छिधामु सुपसपणु महाजसु जासु रामु । गहियई णियकुलचिंधई व राइ सीहासणछत्तई चामराई। पुरवरि घरि मंडलि णिहिय भिच्च बहुबुद्धिवंत णिभिच्च सञ्च। वाले धनुषों को छिन्न-भिन्न कर दिया। दूसरे धनुष छोड़ दिये गये, दूसरे ग्रहण कर लिये गये। पताकाएँ रौद्र अर्धचन्द्र वाणों से लुप्त हो गयीं। तीरों से छिन्न-भिन्न होकर वे दौड़ते-काँपते हुए मूर्चिछत हो गये। आतें खिसक गयीं और महीपीठ पर व्याप्त हो गयीं। गदाओं के आघात से कड़कड़ाते हुए रथ और सारथि गिरने लगे। भयंकर युद्ध करने वाले दोनों योद्धा स्थित थे। स्थिर हाथ, समर्थ, ऐरावत के समान धीर, बालि और लक्ष्मण दोनों महावीर भिड़ गए । विद्युद्-दंड की तरह सरल और तरल, संचरण प्रविशन और निःसरण के मार्गों से युक्त, खन-खन-खन करती हुई, चिनगारियां उड़ाती हुई, जिग-जिग चमकती हुई धारा से सूर्य को पराजित करती हुई तलवारों से वे दोनों भिड़ गए। पत्ता–जिसमें घोड़ों के मुखों का फेन रूपी जल है, ऐसे युद्ध रूपी सरोवर में रक्तधारा रूपी कमलदंड से चंचल, बालि के सिर रूपी कमल को लक्ष्मण रूपी सारस ने तलवार रूपी धोंच से तोड़ दिया। (9) युद्ध में शत्रओं के सिर के कपाल तोड़कर उस (लक्ष्मण) ने किलकिलिपुर नगर के साथ करोड़ों गाँव विद्याधर राजा सुग्रीव को दिए । बताओ इतना बड़ा शौर्य लक्ष्मण को छोड़कर किसका है कि जिसके ऊपर लक्ष्मीधाम, महायशस्वी राम प्रसन्न हैं ? सुग्रीव ने अपने कुल के श्रेष्ठ चिह्न सिंहासन छत्र और चमर ग्रहण कर लिए। नगर और घर में अत्यन्त बुद्धिमान, सच्चे और विश्वसनीय अनुचरों को स्थापित कर दिया। महामेघ गज पर आरूढ़ होकर राजाओं 5. AP दवयंदेहि। 6. A मुक्काई। 7. AP हय लिय। 8. AP कतार । 9.A "धराधोर। 10. A संवरण" 1 11. A पराजिय' । 12 AP असिधाराचंचुइ लक्षणेण । (9) 1. P किलिगिलि । 2. A मन्नेप्पिणु। 3. P लच्छिवासु । 4. A चडाई।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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