SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 75. 2. 9] J143 महाका-पृष्फयंत-विरइयउ महापुराण विद्ध समि इंदइइंदजालु अरिपुरु पलित्तु लग्गाग्गिजालु। पेच्छेसहुं कइवयवासरेहि परबलु पच्छाइउ महु सरेहि । धत्ता--मई कुद्ध राहव सो जियइ जो तुह पयपंकय णवइ । तह देव पयावपसरतसिउ' रवि विणिरंतरु णउ तव ।।1।। 15 तहि अवसरि आय वालिदूउ तें वुत्तु देव अविलंघधामा 'खेयरचुडामणिघडियपाउ" अण्णु वि विण्णवइ पहुल्लकत्तु । तो णिद्धाडहि सुग्गीव हणुय णिवडत कवि तिणधारि पडइ गरुएं सहुं जायइ विग्गहेण तुह विरहखीण गुणवंत संत दासरहि पजपइ लंक जाय वइसारिउ कज्जालाब हूउ' । सीयास इवल्लह णिसुणि राम। अटुंगु णवइ तुह वालिराउ । जइ इच्छहि मेरउं किंकरत्तु। रणभरु सहति किं वालतणुय । णम्गोहविलंबिरुः ऊद्ध चडइ । विहडिज्जइ होणपरिणहेण । मारेप्पिणु रामणु हरमि कत। महुँ समउ खगाहिउ एउ ताव । कर छोड़गा? युद्ध में किसी भी विद्याधर के मद को निर्मद कर दूंगा? इन्द्रजीत के इन्द्रजाल को ध्वस्त कर दूगा। जिसमें अग्निज्वाला लगी हुई है, ऐसे शत्रु पुर को जला दूंगा। देखू गा कि मेरे तीर कितने दिनों में शत्रु सेना को आच्छादित करते हैं। घत्ता-~मरे क्रुद्ध होने पर, हे राम, बही जीवित रहता है, जो तुम्हारे चरण-कमलों को प्रणाम करता है । हे देव, तुम्हारे प्रताप के प्रसार से त्रस्त सूर्य भी निरन्तर नहीं तपता। उसी अवसर पर बालि का दूत आया। उसे बैठाया और कार्य संबंधी बातचीत हुई। उसने कहा-जिनका तेज अतिलंघनीय है, ऐसे सीता सती के स्वामी हे राम सुनिए । जिसका चरण विद्याधरों के चूड़ामणियों पर आरोपित है, ऐसा बालि राजा तुम्हें आठों अंगों से प्रणाम करता है, और प्रफुल्लमुख वह निवेदन करता है कि यदि तुम मुझे अनुचर बनाना चाहते हो तो सुग्रीव और हनुमान को निकाल दो। वे छोटे-छोटे तिनके क्या युद्ध भार उठा सकेंगे ? कुए में गिरता हुआ तिनके को पकड़कर उसी में गिरता है। वट वृक्ष के तने का अवलम्बन लेने वाला ऊपर चढ़ता है । शक्तिशाली से विग्रह होने पर शनि का साथ लेने से (व्यक्ति) विघटन को प्राप्त होता है । तुम विरह से क्षीण गुणवान् और संत हो । मैं रावण को मार कर कान्ता को ले आऊंगा। इस पर राम उस दूत से कहते हैं—जब तक लंका है (मैं लंका में हूँ) तब तक यह विद्याधर राजा 5. A विवंसिवि। 6. A इंदई इंदजालु; P इंदहो इंदजालु । 7. A पयाषइसरतसित। 8. APणदि । (2) 1. AP भूउ । 2. A सो वृत्त । 3. A अविलंबधाम । 4. A 'चूलामणि" | 5. AP पिठ्ठपाउ । 6. A तणुवारि; P तणधारि। 7.Pणगोहि। 8. A वीण।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy