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________________ पंचहत्तरिलो संधि पवणंजयसुयह समागमणि गं हरि हरिहि समावडिउ ।। रहुबइआएसें कुइयमणु लक्खणु वालिहि अन्भिडिउ ।।ध्र वक।। हणएण णवेप्पिणु भणिउ रामु भो यिसुणि भडारा हितरामु। दहवयणु ण इच्छइ संधि देव पर गज्जइ जिह बीहंति देव । सामह णामें जो वेउ सामु सो णायण्णइ वण्णेण सामु । तं णिसुणिवि रोमंचिउ उविदु गलगज्जइ हसियमुहारबिंदु। रणि मारमि दससिरु कुंभयण्णु वणि' लोहिउ दामि कुंभयण्णु । असिधारइ दारमि कुंभिकुंभु दलवट्टमि झ त्ति णिकुंभु कुभु । जीवावहाहं खरदूसणाहं दारमि* उरु रहुवइदूसणाई। पहरंति केम हत्थप्पहत्य' मई मुक्कसरावलि छिण्णहत्य । मारीयउ मारिहि देमि गासु मउ णिम्मउ रणि कासु वि खगासु। पचहत्तरवीं संधि पवनंजयपुत्र के आगमन पर, राम के आदेश से कुपितमन लक्ष्मण बालि से इस प्रकार भिड़ गया मानो सिंह सिंह पर टूट पड़ा हो । हनुमान ने प्रणाम कर राम से कहा-हे आदरणीय देव, सुनिए, सीता का अपहरण करने वाला रावण संधि नहीं चाहता, केवल इस प्रकार गरजता है कि देवता डर जाते हैं। वर्ण से श्याम वह साम नाम के वेद को नहीं सुनता । यह सुनकर लक्ष्मण रोमांचित हो उठे। जिसका मुखरूपी कमल हँसता हुआ है ऐसा वह गरज उठता है-मैं युद्ध में रावण और कुभकर्ण को मारूँगा। कुभकर्ण को धावों से लाल दिखाऊँगा। तलवार की धार से हाथी के गंडस्थल को फाड़ दूंगा । शीन निकुभ और कुंभ (कुंभकर्ण के पुत्र) को चूर-चूर कर दूंगा जीवों का अपहरण करनेवाले, राम के लिए दूषण, खरदूषण के उर को फाड़ दूंगा। मेरे द्वारा मुक्त वाणावली से छिन्नहस्त हस्त और प्रहस्त किस प्रकार आक्रमण करेंगे । मारीच को महामारी का कौर बना (1) 1. A वणलोहिउ । 2. AF जीवावहारु। 3. A दामि कयरहुँ'; T उरु महान्वक्षस्थलं था। 4. AP हत्यावहत्य।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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