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________________ 74.16. 17] 1141 10 महाकइ-पुष्फयंत-विरहयउ महापुराणु कढमि जंघाणलवस णलहु ढोइवि' शुहियह ढंढरउलहु। हणुमंत तुज्झु हणु गिद्ध जिह भक्खंति हणमि संगामि तिह। जज्जाहि मित्त" मोक्कल्लिउ ता पाव णि णयलि चल्लियज। ताचित पइट्ठ विहीसणहु को चुक्कइ कम्म भोसणहु। परमेसरु अद्धधरतिवर मारेव्बउ लक्खणेण णिवइ । तहु दुम्मणु मुहूं अवलोइयां अप्प पहुणा पोमाइयउं। पत्ता-सभरह एतु खल महु ते कुमुणियदप्पहा ।। पुष्फयंत गयणे कि" संमुहुंथंति विडप्पह ।।16।। 15 इय महापुराणे तिसट्ठिमहापुरिसगुणालंकारे महाभव्यभरहाणुमपिणए महाकइपुप्फयंतविरइए महाकव्वे हणुमंतयगमणं । णाम चउहत्तरिमो परिच्छेओ समत्तो ।।74|| भूखे मूल-कुल को दूका है हनुगम् सुग साझामको , मैं तुम्हें संग्राम में इस प्रकार मारूँगा, कि जिससे गिद्ध खा सकें। हे मित्र जाओ-जाओ, मैंने छोड़ दिया। हनुमान् आकाश-मार्ग में उड़कर चला गया। तब विभीषण को चिन्ता उत्पन्न हुई कि भीषण कर्म से कोई नहीं बच सकता। परमेश्वर अर्धचक्रवर्ती हैं, राजा लक्ष्मण के द्वारा मारा जाएगा। रावण ने विभीषण का उदास मुख देखा, और स्वयं की खूब प्रशंसा की। पता-भरत के साथ आते हुए वे दुष्ट क्या मेरे सम्मुख उसी प्रकार ठहर सकते हैं, जिस प्रकार आकाश में धरती पर ज्ञातदर्प राहु के सामने चन्द्रमा। राठ महापुरुषों के गुणानकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदंत द्वारा _ विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का हनुमान् दूत गमन नाम का चहुंत्तरयां परिच्छेद समाप्त हुआ 117411 8. APणेय वि। 9. A हणबंत । 10. Pमित तुहं मोक्कलिउ) 11. A कम्मविहीसणह। 12. AP कुमुणि कंदप्पहो; T कंदप्पही कामस्य । 13. A कह समूह धंति; Pकि सम्म थति । 14. AP यकजे।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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