________________
पासणण
140] महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण
[14. 15.9 दक्कह सयलहं सीसई खुडमि तडिदंडु व पहुउपार पडमि । ता भासिउ मग्गपयासणेण अंतरि पइसेवि विहीसणेण । हम्मइ ण दुउ जपउ विरसु जाणेसहुँ पोरिसु कणयकसु । असिसकडि धणुगुण रवमुहलि रिउहक्कारणमारणतुमुलि ।
पत्ता---राएं भासियउं मा मेरउ विहि विहरेज्जसु ।। . राल्बलक्खणहं संदेसउ एम कहेज्जसु ।। 15॥
16 हेला-सरणं सुरवरस्स' पइसरइ जइ वि काम।
तो बि अहं हणामि सह किंकरहिं रामं ॥ छ।। धुवु पावमि भुक्खिउ कालकलि- तिलमेत्तई खंडइं देमि बति । लक्खणहु सुलक्खणु अवहरमि बंदिग्गहि पहइदेवि धरमि । णयरिउ मंदिरणिज्जियससिउ गेण्हिवि कोसलवाणारसिउ । भडरुहिरमहासमुद्दि तरमि सुग्गीवहु गीवभंगु करमि। खलणीलहु णीलउं सिरु लुणमि कुमुबहु कुमुयप्पएसु वणमि । दसरहदसप्राण इ. पिट्ठयमि जणयहु जिउ जमपुरि पठ्ठवमि कुदहु कुदाहई अट्ठियई
जाणेज्जसु एवहिं णिट्ठियई। तुम सबके मैं सिर काट लूगा और विद्युद् दंड की तरह स्वामी के ऊपर गिरूँगा। तब भीतर प्रवेश करते हुए मार्ग का प्रकाशन करने वाले विभीषण ने कहा-बुरा बोलने वाला भी दूत मारा नहीं जाता, पौरुष को स्वर्ण की तरह दल कर जाना जाएगा। तलवारों से व्याप्त धनुष और डोरियों के शब्द से मुखर शत्रु ओं की हुंकार और प्रहारों से संकुल (युद्ध में)।
__ पत्ता-राजा ने कहा कि मेरे कर्त्तव्य को गोपनीय मत रखो। राम और लक्ष्मण से मेरा सन्देश इस प्रकार कहना---
(16) यदि वामदेव (हनुमान्) देवेन्द्र को भी शरण में चला जाए तो भी मैं अनुचरों के साथ राम का वध करूँगा । मैं निश्चित रूप से भूखे काल रूपी यम को प्राप्त करूँगा। और तिल के बराबर टकड़े कर उसे बलि दूंगा। लक्ष्मण की सुलक्षणा का अपहरण करूंगा और पृथ्वीदेवी को बंदी
घर में रखगा। अपने भवनों से चन्द्रमा को जीतने वाली अयोध्या और वाराणसी नगरियों को • ग्रहण कर, योद्धाओं के रक्त के महासमुद्र में तिरा दूंगा। सुग्रीव की ग्रीवा भंग करूंगा। दुष्ट नील
के नीले सिर काटूगा। कुमुद को नाभि प्रदेश में आघात पहुँचाऊँगा । दशरथ के दसों प्राणों को नष्ट कर देगा। और जनक के प्राणों को यमपुर भेज दूंगा। कुद की फुद से आहत हड्डियों को तुम इस समय नष्ट हुआ जानो । मैं नल की जांघों रूपी मलिका से बसा निकाल गा । और 2. AP बि रहेज्ज।
(16) }. AP सुरव इस्स । 2. Pहणेभि । 3. P कानु कलि । 4, AP देवि। 5.A हिवि ने वि 6. AP वाराणसिध । 7.A "पाण विणिट्ठयमि; P°पाण वि णिवमि ।