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________________ [139 74. 15. 8] महाका-पुष्फयंस-बिरइयउ महापुराण तुहु एक्कु सहाउ बीय पिसुणु सुग्मीउ बालिपावियबसण। ते लक्खण राम दसाणणहु जइ कमि पति पंचाणणहु । तो हरिणा इव चुक्कंति कहिं वाएण जंति गिरिवर वि जहि । तहिं पत्तलु दलु पई कि थविउं जइ पयजुयलउ देवहु णविउं । तो रामहु तुम्हहं तं सरणु णं तो आय एवहि मरणु । पत्ता-हणुएं बोल्लिउं रणु घरि बोल्लंतहं चंगउं ।। भडकलयलकलहि पइसंतहि कंपइ अंगउं ।।4।। 10 15 हेला-धणुजुत्ता भडा वि मज्जति जेम मेहा ॥ तेमण ते भिडंति वरिसंति सवणदेहा ।।छ।। चिरु रिक्खपंतिसंणिहणहहि रत्तउ हयगीउ सयंपहहि । सरु ससरि तिविढें समरि हउ मुउ सत्तमणरयहु णवर गउ। निड् सो तिह ता दि अर्णमाला लायामरकड्ढियरुहिररसु । दहवयण मरेसहि आयणि रइ कि ण करहि मेरइ वयणि । सीहा इव कुडिलचडुलणहर ता उठ्ठिय खग हलमुसलकर । गज्जंतु एंतु तिणसमु गणिउ मारुइणा सुहडसत्थु भणिउ। मुख फोड़ दिया जाना चाहिए। तुम्हारा एक ही सहायक है, और उधर बालि से दुःख पाने वाला सुग्रीव चुगलखोर है। वे राम और लक्ष्मण यदि दशानन की चपेट में पड़ते हैं, तो सिंह से मृगों की तरह किस प्रकार बच सकते हैं ? जहाँ हवा से बड़े-बड़े पेड़ गिर जाते हैं वहाँ पत्तों और दलों को क्या स्थापित किया गया ? यदि तुमने देव के चरण-कमलों को नमन किया है, तो राम ही तुम्हारे लिए शरण है, नहीं तो तुम लोगों का इस समय मरण आ गया। घत्ता-हनुमान ने कहा कि घर में युद्ध की बात करते हुए अच्छा लगता है । योद्धाओं की कल-कल में प्रवेश करने वालों का शरीर कांप जाता है। (15) धनुषों से युक्त सुभट भी मेघों की तरह गरजते हैं लेकिन वे उस प्रकार सप्रण देह (व्रण सहित शरीर, सजल शरीर) नहीं भिड़ते, सजल मेध की तरह बरसते हैं । बहुत प्राचीन समय में नक्षत्र पंक्ति के समान नखों वाली स्वयंप्रभा में अनुरक्त अश्वग्रीव कोलाहल से युक्त यट में त्रिपष्ठ के द्वारा मारा गया था और मरकर सीधे सातवें मरक में गया था। जिस प्रकार वह उसी प्रकार काम के वशीभूत होकर लक्ष्मण के तीरों से जिसका रक्त रूपी रस खींचा गया है, ऐसे तुम दशपदन युद्ध में मरोगे । तुम मेरे बनन में प्रेम क्यों नहीं करते ? तब कुटिल और चंचल नखों वाले सिंहों के समान, हल और मूसल हाथ में लेकर विद्याधर उठे। गरजकर आते हुए उन्हें, उसने तिनके के बराबर समझा। हनुमान् ने सुभट-समूह से कहा-~पास आते हुए 115) 1. °चवल; P°चटुल।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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