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________________ 13811 महाकषि पुष्पदन्त विरचित महापुराण 114. 13.6 पुरि मग्गउ लगउ मज्झु रणि कि अच्छइ तहिं हिंडंतु बणि । तं णिसुणिवि सुट्ट दुर्गछियउं दूएण राउणिभंछियउ। णउ हसिउं देव पई मणियां केसवपिउंणायण्णिय। सृय' सीय वसुधरि देइ जइ परमत्थें इच्छइ संधि तह । सो लिह्यिउं तुह रू वि पुसइम णियभायहु उवरोहें सहइ । 10 हरि केव वि अम्हइ उवसमहूं लंकार अंय अइक्कमहुँ । घसा-मुइ मुइ एह तया" सुहिणेहें" कहइ कइद्धउ॥ रावण वह्इ पाई रणरंगि जणद्दणु कुद्धउ ||13|| 14 हेला-ताव णिकुंभ कभ खरदूसणा विरुद्धा ।। - हणुहणुसद्ददारुणा मारणावलुद्धा ॥छ।। कोवारुणणयण भणंति भंड गोवाल बाल देवमूह जड़। मयरद्धय धुवु लज्जइ रहिउ कि झंखहि णं जरेण गहिउ । खज्जोएं कि रवि डंकियउ कि सायरु गरले पंकियउ। कि भमरें गरुड झडणियउ कि दहमुह अण्णे चंपियन । जेणेहर्ड बोल्लहि मुक्ख तुहं फोडिज्जइ तेरउ दुट्ट मुहं । 5 युद्ध कर ले और नगरी माँग ले । वह वन में व्यर्थ क्यों घूम रहा है ? यह सुनकर उसे अत्यन्त घृणा हुई। उसने राजा की भत्र्सना की कि मैंने तुम से हँसी नहीं की, जैसा कि तुमने मान लिया है। तुमने अभी लक्ष्मण का कहना नहीं सुना–यदि वह वास्तव में संधि चाहता है तो श्री, सीता और धरती दे वह तुम्हारे लिखित रूप को भी मिटा देता लेकिन अपने भाई के अनुरोध पर लक्ष्मण को हम लोगों ने किसी प्रकार शान्त कर रखा है और लंका नगरी पर आक्रमण नहीं किया । घत्ता-'तुम इस स्त्री को छोड़ दो, छोड़ दो', हनुमान् कहता है-'हे रावण क्रुद्ध लक्ष्मण तुम्हें युद्ध में मार डालेगा। (14) इतने में निकुंभ कुभ और खरदूषण विरुद्ध हो गए। मारने के लोभी वे मारो-मारो शब्द से कठोर हो रहे थे। __क्रोध से लाल-लाल आँखों वाले भट कहते हैं-हे गोपालबाल, वसमूढ़ और जड़ कामदेव (हनुमान्), निश्चित रूप से तुम लज्जा से रहित हो, बुढ़ापे से ग्रस्त तुम क्या कहते हो? क्या खद्योत सूर्य को ढाँक सका है? क्या समुद्र विष से पंकिल हुआ है ? क्या भ्रमर गरुड़ को झपट सका है ? क्या रावण दुसरे के द्वारा चांपा जा सकता है ? तुम मूर्ख हो । जिसने यह कहा है- हे दुष्ट, तेरा 4. AP कहिं अन्छइ 1 5. P सुखदुगु" । 6. A जणहसिउ । 7. AP सिय। 8. AP लुहइ । 9. A दियभई। 10. AP तिय। 11. सृहिणिहे। (14) I. हणणस । 2. AP गफलें। 3. AP चप्पियउ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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