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________________ 74. 11. 2] महाकइ पुफयंत विरइयज महापुर अज्ज दा चउरासीलवखधराय रहे आहुट्ट ताज गणेय रहे अज्ज विखुम्भंति ण नृबबलई' अज्ज वि अप्पावहि सीय तुहं मा उज्झउ लंक सतोरणिय सरधोरण गोविंदहुतणिय मा रिट्ठ रिट्ठलोहि रसउ रायागुणता भासिय मज्झत्थु महत्यु सच्चवयणु पड़ मेल्लिवि को विबुहाहवइ विपदुई खणउहि । कोडिउ पण्णास भयंकरहूं । बलवंतहुं बहुपहरणकरहं । दुल्लंघई पडिवलपंघलाई । मा पइस बंधन जमहु मुहं । मा विडउ उयरवियारणिय । दुद्धरधणुगुणरवझणझणिय | मा कालकियतु मासु गसउ । पई चारु चारु उवएसियउं । पई मेल्लिवि को सुपुरिसरयणु । को जागइ एही कज्जगद्द । धत्ता - इय संसिवि सुयणु पोरिस कंप विसुरिद गंपि विहीसणेण दाविउ हणवंतु खगिदहु ||10 11 हेला - विऊणं दसासणं तरुणिहिययहारी || आसीणो वरासणे कुसुमबाणधारी ॥ 135 5 10 15 राम आज भी कुपित न हों, आज भी लक्ष्मण रूपी समुद्र क्षुब्ध न हो, पचास करोड़ चौरासी लाख भयंकर मनुष्यों की तथा साढ़े तीन करोड़ विद्याधरों की बलवान् एवं अनेक आयुध हाथ में लिये शत्रुसैन्य के लिए विघ्न स्वरूप और दुर्लक्ष्य शत्रुसैन्य आज भी क्षुब्ध न हो। आज भी तुम सीता अर्पित कर दो। हे बन्धु, तुम यम के मुख में प्रवेश मत करो। तोरणों सहित अपनी लंका मत जलाओ । उदार विचारणीय दुर्धर धनुष की डोरी के शब्दों से झन झन झरती लक्ष्मण के तीरों की पंक्ति उसके ऊपर न पड़े। कौआ रावण के मांस के लिए न चिल्लाए, काल कृतान्त मांस न खाए। इस पर राजा का छोटा भाई (विभीषण) बोला- तुमने अत्यन्त सुन्दर उपदेश दिया। तुम्हें छोड़कर महार्थवाला और सत्यवादी मध्यस्थ और कौन सुपुरुषरत्न हो सकता है? तुम्हें छोड़कर और कौन बुधाधिपति हो सकता है ? इस कार्य गति को भला और कौन जान सकता है ? पत्ता--- इस प्रकार सज्जन की प्रशंसा कर विभीषण ने हनुमान् को अपने पौरुष से सुरेन्द्र को कंपित करने वाले विद्याधर राजा रावण से जाकर मिलवाया। (11) दशानन को प्रणाम कर तरुणियों के हृदय का अपहरण करने वाला कामदेव हनुमान् श्रेष्ठ आसन पर जाकर बैठ गया । ( 10 ) 1.P विबल 2. P कालकयंतु । 3. AP हणुमंतु ।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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