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________________ 134] महाकषि पुष्पदन्त चिरचित महापुराण [74.9.1 5 हेला-णि यकुलकुमुयससहरो मुणियरायणाओ॥ आओ तेण मपिणओ अंजणंगजाओ ॥छ।। रयणुज्जलु आसणु घल्लियउं मणहारि समंजसु बोल्लियउं । पाहुणयवित्ति णिस्सेस' कय पुच्छिउ कहिं अच्छिय कहि वि गय । कि किज्जइ कि किड आगमणु तं णिसुणिवि पभणइ रहरमणु। गुणवंतु भत्तिभाउन्भवउ' णयवंतु संतु महुरुल्लवड।। पई जेहउ माणुसु जासु धरि कि सो लग्गइ परघरिणिकरि । लइ एत्थु विहीसण दोसु ण वि कालिंदिसलिलणिहदेहछवि । पत्थहि पउलथि देउ तरुणि पायालि म णिवडउ णिस्करुणि। धत्ता-गिरि गिरिययसरिसु गोप्पउ' जासु रयणायरु॥ तें सहूं कवणु रणु किं करइ गब्बु तुह भायरु 119।। 10 हला-दिवाधिक पलपल ॥ णहयरणाहमउडि मा पडउ पलयभारी छ।। 10 (9) अपने कुल रूपी कुमुद के चन्द्र, राजन्याय को जाननेवाले, अंजना के शरीर से उत्पन्न, आए हुए हनुमान् का उसने आदर किया। उसे रलों से उज्ज्वल आसन दिया तथा सुन्दर और उचित बात की। समस्त आतिथ्य वति पूरी की। उसने पूछा-कहाँ थे और कहाँ गए थे, क्या किया जाए, किसलिए आपने आगमन किया? यह सुनकर कामदेव बोला--तुम जैसा गुणवान् भक्तिभाव से उत्पन्न न्यायवान् शांत मधरभाषी मनुष्य जिसके घर में है ? वह दूसरे की स्त्री के हाथ से क्यों लगता है ? लो विभीषण, यहाँ दोष भी नहीं है, तुम प्रार्थना करो कि यमुना नदी के जल के समान देहछविवाला रावण युवती को दे दे (सीता वापरा कर दे) और वह व्यर्थ ही पाताल लोक में न जाए। पत्ता--पहाड़ जिसे गेंद के समान है, समुद्र जिसे गौपद के समान है, उसके साथ कैसा युद्ध ? तुम्हारा भाई क्यों व्यर्थ अहंकार करता है ? (10) जिसने अदृष्ट कष्ट झेल लिये हैं, ऐसी राम की नारी को वापस कर दो। विद्याधर राजा के मुकुट के अग्रभाग पर प्रलयमारी न पड़े। (9) 1. AP णीसेस । 2 A भाउत्तमउ ! 3. A पहलच्छि देव । 4. P गोप्पन घ जाम् । 5. A करइ तुहारउभायर।
SR No.090276
Book TitleMahapurana Part 4
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2001
Total Pages288
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size7 MB
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